69 हजार शिक्षक भर्ती में आरक्षित वर्ग की खुलेआम की गई हकमारी
6800 के समायोजन के वादे को पूरा नहीं किये मुख्यमंत्री-लौटनराम निषाद
लखनऊ। भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ.लौटनराम निषाद ने 69 हजार प्राथमिक शिक्षक भर्ती में ओबीसी,एससी वर्ग की खुलेआम हकमारी का आरोप लगाया है। उत्तर प्रदेश आरक्षण नियमावली के अनुसार राज्य सेवाओं में ओबीसी कप 27 प्रतिशत,एससी को 21 प्रतिशत व एसटी को 2 प्रतिशत कोटा निर्धारित है। 69 हजार शिक्षक भर्ती में बड़े पैमाने पर कोटे की घोटालेबाजी की गई।
ओबीसी को 27 प्रतिशत के सापेक्ष मात्र 3.48 प्रतिशत,एससी को 21प्रतिशत के सापेक्ष 15.61 प्रतिशत ही कोटा दिया गया।उ प्र में बेसिक शिक्षा परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों में 69 हजार शिक्षक भर्ती में आरक्षण अधिनियम का पालन नहीं किया गया।राष्ट्रीय पिछङा वर्ग आयोग की रिपोर्ट फाइल संख्या एन सी बी सी/07/10/10/2020 के अनुसार पिछङे वर्ग के 18851अभ्यर्थी ओवेलैपिंग कर अनारक्षित श्रेणी में चयनित हुए थे लेकिन मात्र 12,962अभ्यर्थियों को ही नियुक्ति पत्र दिया गया,शेष 5,844 पद सवर्ण अभ्यर्थियों को आवंटित कर दिया गया। इसी प्रकार 69 हजार में 27 प्रतिशत की दर से पिछङे वर्ग के लिए 18598 पद का हक बनता है लेकिन नियुक्ति मात्र 12,754 अभ्यर्थियों को ही दिया गया ।
पिछङे वर्ग की सूची में 6,843 सवर्ण अभ्यर्थियों को नियुक्ति दे दिया गया ।जो खुलेआम ओबीसी के पदों की हकमारी का प्रमाण है।
निषाद ने बताया कि अनारक्षित श्रेणी के अभ्यर्थियों का कट ऑफ मेरिट 67.11है तथा पिछङे वर्ग के अभ्यर्थियों का कट ऑफ मेरिट 66.73 है अर्थात पिछङे वर्ग के आरक्षित कोटे में मात्र 0.38 अंक में ही आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी चयनित हुए हैं जिनकी संख्या मात्र 2,637 है अर्थात पिछङे वर्ग के अभ्यर्थी आरक्षित कोटे में मात्र 4 प्रतिशत संख्या 2637 ही चयनित हुए हैं ।कटऑफ मेरिट के आधार पर अनारक्षित कोटे में आरक्षित वर्ग के चयनित अभ्यर्थियों की गिनती उनके लिए आरक्षित कोटे में नहीं की जाती है। राष्ट्रीय पिछड़ावर्ग आयोग ने इस भर्ती में भारी गड़बड़ी पाया था और मुख्यमंत्री ने भी गड़बड़ी को स्वीकार किये थे।
माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद पीठ लखनऊ के समक्ष अभ्यर्थियों द्वारा प्रस्तुत विवरण के अनुसार अनारक्षित श्रेणी में पिछङे वर्ग के अभ्यर्थी 28,978; अनुसूचित वर्ग के 4,742 तथा अनुसूचित वर्ग के 52 चयनित हुए हैं लेकिन नियुक्ति पिछङे वर्ग के अभ्यर्थियों को 13,007; अनुसूचित वर्ग 1,733 तथा अनुसूचित जनजाति के 24 को ही दिया गया है।
मा. उच्च न्यायालय के समक्ष शासन द्वारा स्वीकार किया गया कि आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थी जिनकी मेरिट सवर्ण अभ्यर्थियों से अधिक है, चयन से वंचित रह गए हैं ।सरकार के अनुसार यह संख्या 6800 है। माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष शासन द्वारा स्वीकार किया गया कि आरक्षित श्रेणी के इन अभ्यर्थियों को नियुक्ति दिया जायेगा ।लेकिन गलत ढंग से चयनित अभ्यर्थियों को निकालने का निर्णय नहीं लिया गया है।मा. उच्च न्यायालय द्वारा यह पूछने पर कि उन्हें निकाले बिना आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को नियुक्ति कैसे दिया जायेगा, सरकार द्वारा कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया ।
इससे स्पष्ट है कि गलत ढंग से चयनित सवर्ण अभ्यर्थियों को सरकार बाहर नहीं करना चाहती है।उल्लेखनीय है कि इस प्रकार से गलत ढंग से चयनित 6800 अभ्यर्थियों को शासन द्वारा अबतक वेतन के रूप में 6,80,0000000=00(छःअरब अस्सी करोड़) का भुगतान किया जा चुका है ।निश्चित रूप से यह धनराशि आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को मिलना चाहिए थी।महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि सरकार के संज्ञान में आने के बाद भी इन गलत ढंग से चयनित अभ्यर्थियों को निकाला नहीं गया और न ही गलत ढंग से चयन करने वाले अधिकारियों/कर्मचारियों के विरुद्ध कोई कार्यवाही ही किया गया है ।
यह स्पष्ट है कि इस चयन में व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार किया गया है तथा उच्चाधिकारी एवं राजनैतिक व्यक्ति शामिल हैं ।भ्रष्टाचार के नाम पर जीरो टालरेन्स की बात करने वाली सरकार इस भ्रष्टाचार पर ऑखे क्यों बंद कर रखी है।विधानसभा चुनाव ने पूर्व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 6800 आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों का समायोजन करने का वादा किया था,जिसे पूरा न कर वादाखिलाफी कर रही है।उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार से शीघ्र 6800 ओबीसी,एससी अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र जारी कराने की मांग किया है।