उत्तर प्रदेश में अब जाति विषेश के दम पर सियासत करने वाले ओमप्रकाश राजभर का जानें कैसे खिसक रहा है जनाधार

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लखनऊ जाति विशेष के दम पर खड़ी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) की नींव अब दरकने लगी है। यह उसके मुखिया ओमप्रकाश राजभर की शक्ति क्षीण होने का जबरदस्त संकेत है। लोकसभा चुनाव में राजभर बाहुल घोसी सीट से खुद उनके बेटे की हार उपरोक्त बात को स्पष्ट रूप से संकेत कर रही है।

इतना ही नहीं सुभासपा प्रमुख पिछले 2022 के चुनाव में बनारस की राजभर बहुल शिवपुर विधानसभा सीट पर भी अपने बेटे को नहीं जिता सके थे। उस चुनाव में ओमप्रकाश के साथ साइकिल की ताकत थी, तो इस बार कमल का बल। इसके बाद भी उन्हें मुंह की खानी पड़ी। इसके पूर्व 2017 में भी बलिया के बांसडीह विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़कर उनके पुत्र हार चुके हैं जबकि पत्नी रसड़ा से हारीं। यह कहा जाये कि लगभग पूरा परिवार हार का स्वाद चख चुका है तो अतिशयोक्ति नहीं होगा।

 

लोकसभा चुनाव में मिले मतों का विश्लेषण करें तो सभी राजभर मतदाता बहुल सीटों पर एनडीए के प्रत्याशी को संतोषजनक मत नहीं मिल सके। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में शिवपुर में ओमप्रकाश के बेटे अरविंद राजभर के सामने भाजपा के अनिल राजभर थे तो इस बार घोसी संसदीय सीट पर गैर मान्यता प्राप्त दल मूल निवासी समाज पार्टी (मूनिसपा) की प्रत्याशी लीलावती राजभर।

 

लीलावती को आश्चर्यजनक रूप से 47,527 मत मिले जो 2019 के लोकसभा चुनाव में सुभासपा उम्मीदवार महेंद्र राजभर को मिले वोटों से भी 10 हजार अधिक थे। इधर अरविंद राजभर भाजपा से गठबंधन के बावजूद 3.40 लाख मतों पर सिमट गए जबकि पिछले चुनाव में उनकी ही जाति के भाजपा प्रत्याशी पूर्व सांसद हरिनारायण राजभर को 4.51 लाख से अधिक मत मिले थे। ये आंकड़े ओमप्रकाश राजभर के गिरते जनाधार को स्पष्ट रूप से प्रमाणित करते है।

 

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