मजलिस में दिखावा या ताकत का इस्तेमाल का मोज्जा।

एस एम मासूम

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मजलिस में दिखावा या ताकत का इस्तेमाल का मोज्जा।

अज़ादारी में दिखावे से एक दुसरे से मुआबले से या अज़ादारी के नाम पे दुनियावी फायदे की लालच से बचो क्यों की जब जब ऐसी कमियां अज़ादारों में आयी तब तब अल्लाह की तरफ से हिदायत आई और इमाम ऐ ज़माना (अ.स) की तरफ से हिदायतें आई |

हमारे घराने के पानदरीबा जौनपुर निवासी जनाब नकी हसन साहब अपनी किताब My Nostalgic Journey में लिखते हैं की शायद वो इलाका घोसी (गाजीपुर ) या आस पास का कोई गाँव था जहां एक अमीर शख्स ने एक गरीब अज़ादार मोमिना से कहा की तुम जो मजलिस का एहतेमाम करती हो उसका वक़्त बदल दो क्यूँ की उस वक़्त मैं खुद मजलिस का एहतेमाम कर रहा हूँ | यह सुन के उस गरीब को दुःख हुआ लेकिन उसने अपनी मजलिस का वक़्त बदलना सही नहीं समझा उस अमीर शख्स ने शानदार तरीके से मजलिस और नजर ऐ मौला का एहतेमाम किया और जैसा की हुआ करता है हमेशा उन अमीर साहब के यहाँ बड़ा मजमा हुआ और लोगों ने बड़ी कसरत से शिरकत की लेकिन कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अल्लाह के खौफ को महसूस किया और वे सब उस गरीब के यहाँ मजलिस में गए लेकिन तादात में वो सिर्फ कुछ गिनती की ही थी |

जिन लोगों ने उस गरीब के यहाँ मजलिस में शिरकत की उन्होंने महसूस किया की लालटेन की रोशनी अचानक थोड़ी कम हुयी और फर्श ऐ अजा कुछ काले कपडे पहने हुयी अज़दारों से भर गया जिनकी गिरया (रोने ) की आवाजें बलंद थीं और यह एक बड़ा मजमा था | लेकिन जैसे ही मजलिस ख़त्म हुयी वहाँ कोई न दिखा सिर्फ कुछ गाँव के लोग ही बचे |

इस इबरतनाक मुअज्ज़े की खबर जब लोगों को लगी तो वो अमीर शख्स और दुसरे लोग आये उस गरीब के यहाँ और माफी मांगने लगे और जैसा की होता है गरीब का दिल बड़ा हुआ करता है उसने उन्हें माफ़ कर दिया | उस अमीर शख्स ने उस मोमिना की इजाजत से उसके घर में एक मजलिस ऐ हुसैन का एहतेमाम किया और उस जगह पे एक इमाम बाड़ा बनवा के दिया \

इस मुअज्ज़े का ज़िक्र मैं भी अक्सर किया करता हूँ ऐसे ही एक बार जनाब आज़म जैदी साहब से इसका ज़िक्र किया जहाँ उनके अब्बा का नानिहाल भी है | उन्होंने बताया की उनकी वालेदा अनीस फ़ातेमा भी बताया करती थीं की यह मुअज्ज़ा उन्होंने अपनी माँ से सुना था | जिस गाँव में यह मुअज्ज़ा हुआ था उस गाँव का नाम घोसी था और जब यह मुअज्ज़ा हुआ था तो आलम के पंजो से रौशनी आने लगी थी |
इस मुअज्ज़े का ज़िक्र मैं भी अक्सर किया करता हूँ ऐसे ही एक बार जनाब आज़म जैदी साहब से इसका ज़िक्र किया जहाँ उनके अब्बा का नानिहाल भी है | उन्होंने बताया की उनकी वालेदा अनीस फ़ातेमा भी बताया करती थीं की यह मुअज्ज़ा उन्होंने अपनी माँ से सुना था | जिस गाँव में यह मुअज्ज़ा हुआ था उस गाँव का नाम घोसी था और जब यह मुअज्ज़ा हुआ था तो अलम के पंजो से रौशनी आने लगी थी |

इस मुअज्ज़े से यकीनन यह बात साफ़ हो गयी की मजलिस के एहतेमाम में दिखावा , अमीर गरीब का फरक, ताक़त का इस्तेमाल, रियाकारी और इसके ज़रिये दुनियावी ताकत या इज्ज़त हासिल करने की कोशिश अह्लेबय्त को, हुसैन (अ.स) की माँ फ़ातेमा ज़हरा को तकलीफ पहुंचाती है और उनके बेटे हमारे इमाम ऐ ज़माना ( अ.स ) के आंसुओं की वजह बनता है जो हमारे इस ग़लत अमल की वजह से आते हैं |

अल्लाह हमें अह्लेबय्त के सदके हमें सही ढंग से ख़ुलूस से अज़ादारी करने की तौफीक अता करे |

फोटो घोसी के इमामबाड़े की है लेकिन मुझे नहीं मालूम की जिस इमामबाड़े का ज़िक्र जनाब नक़ी हसन साहब ने किया है वो यही है या कोई और …..एस एम् मासूम

 

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