हालिया उप चुनाव में भाजपा को लगे झटके का उत्तरप्रदेश की अगली 10 सीटों के उपचुनाव पर क्या पड़ेगा असर

अशोक भाटिया मुम्बई

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उत्तर प्रदेश शनिवार को सात राज्‍यों की 13 सीटों पर हुए उपचुनावों के नतीजे आ गए हैं। ये नतीजे भारतीय जनता पार्टी  के लिए दिल तोड़ने वाले थे। वहीं अब इन राज्‍यों में उपचुनावों के बाद उत्‍तर प्रदेश की 10 सीटों पर भी उपचुनाव होने हैं। सबकी नजरें उत्तरप्रदेश की 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनावों पर टिक गई हैं।लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद इन 10 सीटों की स्थिति में काफी बदलाव आया है। भारतीय जनता पार्टी  के नेतृत्व वाला एनडीए और सपा के नेतृत्व वाला इंडिया गठबंधन उपचुनावों में एक-दूसरे से मुकाबला करने के लिए अपनी रणनीति बना रहे  है और अपने विकल्पों पर विचार कर रहे  है।

 

उत्तरप्रदेश में 10 सीटों पर उपचुनाव होने हैं। लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद ये चुनाव भाजपा  के लिए भी बेहद अहम हैंउत्तर प्रदेश की जिन 10 सीटों पर उपचुनाव होने हैंउनमें तीन सीटें ऐसी हैं जहां से भाजपा  के विधायक थे तो वहीं एक-एक सीट निषाद पार्टी और आरएलडी के कब्जे में थी। पांच सीटों से सपा के विधायक थे।

इन सीटों में मझवांकटेहरीमीरापुर और खैर के साथ ही करहलमिल्कीपुरकुंदरकीगाजियाबादफूलपुर और सीसामऊ विधानसभा सीट शामिल हैं। मैनपुरी जिले की करहल सीट से सपा प्रमुख अखिलेश यादव विधायक थे। अखिलेश यादव ने कन्नौज से सांसद निर्वाचित होने के बाद विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। वहींअयोध्या की मिल्कीपुर विधानसभा सीट अवधेश पासी के फैजाबाद से सांसद निर्वाचित होने के बाद इस्तीफे से रिक्त हुई है।

दरअसल लोकसभा चुनाव के बाद सियासी दलों की ये सबसे बड़ी परीक्षा थी, जिसमें इंडिया ब्लॉक ने एनडीए को चित्त कर दिया है। 7 राज्यों की 13 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजों ने इंडिया गठबंधन को खुशी मनाने का बडा मौका दे दिया है। बंगाल में टीएमसी ने सभी चारों सीटें जीतकर जलवा बिखेरा है तो उत्तराखंड की दोनों सीटें कांग्रेस के खाते में आई हैं। हिमाचल में भी 3 में से 2 सीटों पर कांग्रेस ने विजय पताका लहराई है तो पंजाब की इकलौती सीट आप की झोली में गिरी है। तमिलनाडु की एकमात्र सीट पर डीएमके ने कब्जा जमाया है।

उधर, हिमाचल में प्रदेश की जनता ने खरीद-फरोख्त की राजनीति को नकार कर अपना वोट राज्य में राजनीतिक पारदर्शिता को बनाए रखने के लिए दिया है। देहरा में 25 वर्षों के बाद कांग्रेस प्रत्याशी की जीत हुई है और नालागढ़ में भी कांग्रेस प्रत्याशी बड़े अंतर से जीते हैं। हिमाचल प्रदेश में अब कोई भी पार्टी आने वाले 50 साल में खरीद-फरोख्त की राजनीति करने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगी और प्रदेश से यह संदेश पूरे देश की राजनीति में जाएगा।’

उपचुनाव के स्कोर कार्ड की बात करें तो 13 में से इंडिया ब्लॉक के खाते में 10 सीट, एनडीए के पक्ष में 2 सीट और अन्य की झोली में 1 सीट गई है। भाजपा  का प्रदर्शन खराब रहा है और यह पार्टी के लिए चिंताजनक है। भाजपा  को सिर्फ 2 सीटों पर जीत मिली है। सबसे बड़ा झटका बंगाल में लगा जहां सभी 4 सीटों पर भाजपा  को हार मिली है, जबकि हिंदी पट्टी यानी उत्तराखंड की दोनों सीटों पर भारतीय जनता पार्टी को फजीहत झेलनी पड़ी है।

 

भाजपा  सिर्फ हिमाचल में हमीरपुर और मध्यप्रदेश में अमरवाड़ा सीट पर जीत का झंडा लहरा पाई। यहां कार्यकर्ताओं ने जमकर जश्न मनाया लेकिन पार्टी दिग्गजों के लिए ये नतीजे उनकी पेशानी पर बल डालने वाले हैं। इस चिंता की बड़ी वजह ये है कि अब उत्तर प्रदेश में भी 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने वाला है और भाजपा  के लिए ये एक बड़ी अग्निपरीक्षा होगी।

विडम्बना है कि इससे एक दिन पहले ही शुक्रवार को हुआ महाराष्ट्र एमएलसी चुनाव NDA के लिए शुभ साबित हुआ था। महाराष्ट्र में विधान परिषद की 11 सीटों पर हुए चुनाव में एनडीए के लिए अच्छी खबर तब आई थी, जब 9 सीटों पर उसके सभी 9 उम्मीदवारों की जीत हुई और महाविकास अघाड़ी को सिर्फ 2 सीटें ही मिलीं।महाराष्ट्र में इसी साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले महायुति के लिए ये शुभ संकेत है, लेकिन 7 राज्यों में 13 सीटों पर उपचुनाव के नतीजे इंडिया ब्लॉक का हौसला और बढ़ाने वाला है। दूसरी ओर यह एनडीए के लिए चिंतन-मंथन के एक और दौर की शुरुआत का संकेत है।

उत्तराखंड में मंगलौर और बद्रीनाथ सीट पर उपचुनाव हुआ था। इन सीटों पर पहले कांग्रेस और बसपा का कब्जा था और भाजपा  के सामने थी सीट को हथियाने की चुनौती, जिसमें वह सफल नहीं हो सकी। बद्रीनाथ सीट पर कांग्रेस के लखपत सिंह बुटोला ने करीब 5 हजार से अधिक वोटों से भाजपा  के राजेंद्र भंडारी को शिकस्त दी। राजेंद्र भंडारी ही पहले यहां से विधायक थे लेकिन बाद में वह भाजपा  में शामिल हो गए थे।मंगलौर सीट जो बसपा विधायक सरबत करीम अंसारी के निधन के बाद खाली हुई थी, उस सीट पर पर कांग्रेस के काजी निजामुद्दीन ने बाजी मारी और कड़े मुकाबले में उन्होंने भाजपा  के करतार सिंह भड़ाना को 400 से अधिक वोटों से हराया। काजी निजामुद्दीन इस सीट पर पहले भी 3 बार कांग्रेस के विधायक रह चुके हैं। बद्रीनाथ विधानसभा उपचुनाव के नतीजों ने साबित कर दिया है कि जनता जबरदस्ती के थोपे चुनाव और दल बदलू नेता को किसी भी सूरत में बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है। एक तरफ जहां जनता की नाराजगी साफ-साफ इस उपचुनाव के परिणाम में देखने को मिल रही है, वहीं अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ताओं में भी नाराजगी देखने को मिल सकती है क्योंकि जब से राजेंद्र सिंह भंडारी भाजपा में शामिल हुए हैं तब से भाजपा के कार्यकर्ता खुद को असमंजस की स्थिति में देख रहे हैं। यही एक कारण भी रहा कि भाजपा को यहां प्रचार में प्रदेश के अधिकतर कैबिनेट मंत्री, गढ़वाल सांसद, कुमाऊ सांसद, राज्य मंत्रियों सहित खुद मुख्यमंत्री धामी के भी शामिल होने के बाद भी सफलता नहीं मिल पाई।

जनता ने साफ कर दिया कि अब जबरन थोपे गए प्रत्याशियों के जमाने लद गए। बद्रीनाथ में भाजपा जनता का मिजाज भांपने में विफल रही। लोकसभा चुनाव में ही अंदरखाने बह रही हवा का वो आंकलन नहीं कर पाई और विधानसभा उपचुनाव में गलत प्रत्याशी पर दांव खेलने का खामियाजा हार के रूप में भुगतना पड़ा।

 

बता दें कि, लोकसभा के चुनावी नतीजों के बाद से उत्तरप्रदेश के सियासी गलियारों में उठी हलचल थम नहीं रही है। भाजपा  लगातार चुनावी नतीजों की समीक्षा में जुटी है। जमीनी स्तर पर भी खराब प्रदर्शन की वजहों की पड़ताल कर रही है, लेकिन इन कोशिशों के बीच अब भाजपा  के ही कुछ नेताओं के तेवर तल्ख हो रहे हैं जो उत्तरप्रदेश में पार्टी के सामने नई चुनौती खड़ी कर रहे हैं।ताजा बयान है उत्तरप्रदेश के जौनपुर की बदलापुर सीट से भाजपा  विधायक रमेश मिश्रा का, जिन्होंने वीडियो जारी कर साफ शब्दों में प्रदेश में पार्टी की स्थिति को खराब बताया और ऐसी स्थिति में विधानसभा चुनाव में पार्टी की जीत को मुश्किल बताया। भाजपा  विधायक रमेश मिश्रा ने बड़ा दावा करते हुए कहा है कि, ‘इस समय जैसी स्थिति है उस हिसाब से 2027 में हमारी पार्टी की सरकार नहीं बनेगी। रमेश मिश्रा का बयान सामने आते ही विपक्षी दलों को भाजपा  पर हमले का बड़ा मौका मिल गया है।हालांकि रमेश मिश्रा ने वीडियो जारी कर सफाई देते हुए कहा है कि, उनकी बात को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है। समाजवादी पार्टी के लोग इसको मुद्दा बना रहे हैं लेकिन मेरा यह आशय नहीं था। 2027 में फिर भाजपा की सरकार आएगी कोई रोक नहीं सकता।

हालांकि राजेश मिश्रा पहले नेता नहीं हैं जिन्होंने पार्टी को सचेत करने की कोशिश की है। इससे पहलेउत्तरप्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री राजेंद्र प्रताप सिंह उर्फ मोती सिंह भी भरे मंच से थानों-दफ्तरों में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठा चुके हैं। अब भाजपा  नेताओं के ऐसे बयानों के आधार पर विपक्षी योगी सरकार को घेरने में लगे हैं। दूसरी तरफ भाजपा  नेताओं के ऐसे बयानों को अखिलेश यादव PDA वाले दांव का असर बता रहे हैं और आने वाले चुनावों में भी भाजपा  की हार का दावा कर रहे हैं।

 

अब तो भाजपा  के सहयोगी  दल भी भाजपा का टेंशन बढ़ा रहे है । एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक उत्तरप्रदेश की 10 सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए अब सीटों की ज्यादा  डिमांड.कर रहे हैं। इन 10 सीटों में चार सीटें भाजपा  के दो सहयोगी मांग रहे हैं। इसमें दो सीटों पर निषाद पार्टी और दो सीटों पर राष्‍ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के लड़ने की मंशा है। निषाद पार्टी साल 2022 में जिन दो विधानसभा सीटों पर लड़ चुकी है उनमें अंबेडकर नगर की कटेहरी विधानसभा सीट और मिर्जापुर की मंझवा विधानसभा सीट शामिल है। वहीं जिन दो सीटों पर राष्ट्रीय लोक दल लड़ना चाहती है वो सीटें हैं मुजफ्फरनगर की मीरापुर विधानसभा सीट पर और अलीगढ़ की खैर विधानसभा सीट है।निषाद पार्टी के मुखिया संजय निषाद ने इस बात को लेकर अपनी मंशा साफ कर दी है कि वो पिछली बार कटेहरी विधानसभा सीट और मझवां सीट पर लड़ चुके हैं। इस लिहाज से इन दोनो सीटों की मांग वो इस बार भाजपा  हाई कमान से करने वाले हैं। वहीं रालोद के प्रवक्ता अनिल दुबे का कहना है कि मीरापुर विधानसभा सीट उनके पास ही रही है और इसके अलावा उनके पार्टी के वर्चस्व वाली सीटों की मांग वो लोग करने को इच्छुक हैं। जिसमे खैर विधानसभा सीट आती हैअगर ये चारों सीटें गठबंधन के पास जाती हैं तो भाजपा  के पास सिर्फ सीटें बचेंगीं।

 

 

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