जुलुस आठ मुहर्रम में या सकीना या अब्बास की सदा गुंजती रही

आठ मोहर्रम का ऐतिहासिक जुलूस,में बाद ख़त्म मजलिस जुलजनाह अलम व ताबूत निकला गया जुलुस की हमराह अंजुमन हुसैनिया की सदा अब्बास का मातम है वफादार का मातम!

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जौनपुर। शिराज- ऐ- हिन्द-का तारीखी कदीम आठवीं मोहर्रम का ऐतिहासिक जुलूस आज दिन में दो बजे नाज़िम अली खान के इमाम बाड़े से बरामद हुआ इस जुलुस की हमराह अंजुमन हुसैनिया के नेतृत्व में निकाला गया। जिसमें शहर की तमाम  मातमी अंजुमनों ने नौहा व मातम कर कर्बला के शहीदों को नज़राने अक़ीदत पेश किया।
बता दे की आठ मोहर्रम को जनपद के लग भाग सभी इलाकों में मजलिसों एवं जुलूस का आयोजन किया जाता है । गुरूवार को नगर क्षेत्र का या ऐतिहासिक आठ मोहर्रम का जुलूस अपने पुराने रिवायती अंदाज में  मोहल्ला नसीब खां मंडी स्थित इमामा बाड़ा नाजिम अली खां से बरामद हुआ ।

 

इस मजलिस में दिल्ली से आये मशहूर वैज्ञानिक जाकिर व ख़ातिब डॉ. कल्बे रजा नकवी ने अपने मकसूस अंदाज़ मजलिस को बयान करते हुए कहा कि आज पूरी दुनिया में इमाम हुसैन का गम इस समय मनाया जा रहा है।

 

उन्होंने कहा कि कर्बला में हजरत इमाम हुसैन ने अपने छह माह के बच्चे जनाबे अली असगर की शहादत पेश करने से भी पीछे नहीं हटे। हजरत इमाम हुसैन ने अपने जवान बेटे अली अकबर की शहादत पेश की तो तेरह साल के भतीजे जनाबे कासिम की जान भी दीने इस्लाम को बचाने में कुर्बान कर दी।
उन्होंने कहा कि यजीदी हुकूमत ने जुल्म की इंतहा पार करते हुए छोटे छोटे बच्चों को पानी तक पीने से रोक रखा था यही वजह थी कि दसवी मुहर्रम को जब इमाम हुसैन जंग के मैदान में गये तो उन्हें घोड़े पर सवार करने वाला भी कोई नहीं था तब उनकी जनाबे जैनब ने उन्हें घोड़े पर सवार कर अलविदा किया था। इमाम हुसैन जब जंग की ओर रवाना हो रहे थे उनकी चार वर्षीय बेटी जनाबे सकीना घोड़े के पांव से लिपट कर रो रही थी जिसकी वजह से घोड़ा आगे नहीं बढ़ रहा था जिसके बाद इमाम हुसैन ने घोड़े से उतरकर अपनी बेटी सकीना को गले से लगाकर कहा कि आज से तुम अपनी फुफी के साथ रहना मुझे अपने नाना का दीने इस्लाम बचाने के लिए मैदान में जाना है।
इमाम हुसैन ने जंग के दौरान हजारों यजीदी फौजों को हलाक किया तभी आकाशवाणी हुई कि ऐ नफ्से मुतमइना पलट आ अपने रब की तरफ मैं तुझसे राजी और तू मुझसे राजी। ये आकाशवाणी सुनकर जैसे ही इमाम हुसैन ने तलवार को अपनी मियान में रखा यजीदी फौजों ने उन्हें घेर कर हमला किया और शहीद कर दिया। जिसके बाद अंजुमन हुसैनिया बलुआघाट के नेतृत्व में शबीहे अलम जुलजनाह और गहवारे अली असगर बरामद हुआ। साथ ही नगर की 20 से ज्यादा मातमी अंजुमनों ने नौहा मातम कर रही है। जुलूस अपने कदीमी रास्तों से होता हुआ अटाला मस्जिद तक जायेगा  यहाँ तुर्बत का मिलन होने के बाद जुलूस पुन:
इमामबाड़ा नाजिम अली खां में जाकर समाप्त होगा। जुलूस में हज़ारो अजादार मौजूद है। जुलूस का संचालन परवेज हसन कर रहे है।। इस दौरान सुरक्षा व्यवस्था के मद्देनजर प्रशासनिक अधिकारी व पुलिस बल तैनात है। वहीं सातवीं मुहर्रम की देर रात्रि नगर के सिलेखाना स्थित मेंहदी का जुलूस निकाला गया जो अपने कदीम रास्ते से होता हुआ इमामबाड़े पहुंचा जहां शबीहों को एक दूसरे से मिलाया गया। इस दर्दनाक मंजर को देखकर लोगों की आंखों से आंसू छलक उठी!
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