निजी स्कूलों की मनमानी से अभिभावक पर पड़ रहा हैं बोझ, महंगी किताबे खरीदने को मजबूर

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निजी स्कूलों की मनमानी से अभिभावक पर पड़ रहा हैं बोझ, महंगी किताबे खरीदने को मजबूर

 

एल केजी व यूकेजी की किताबें के सेट का मूल्य 2 से 3 हजार रुपए 

 

किताबो के साथ जूता मोजा, ड्रेश, टाई, बेल्ट पर भी मोटा कमीशन 

 

निजी स्कूलों के प्ले ग्रुप एल केजी व यूकेजी में एनसीईआरटी की पुस्तकें नही है शामिल

 

यदि सरकार सही से जांच कराए तो सबसे बड़े जीएसटी घोटालेबाज निकलेंगे स्कूल संचालक

तामीर हसन शीबू 

जौनपुर। अच्छी शिक्षा और बेहतर व्यवस्था के लिए अभिभावक महंगाई की मार से बेहाल हैं। नए सत्र में कॉपी किताबों के दाम बढ़ गए हैं। दुकानदार और स्कूल प्रबंधकों के कमीशनखोरी अभिभावकों की जेब पर पड़ रही हैं। अधिकतर स्कूल हर वर्ष कोर्स में शामिल किताबें के प्रकासक बदल देते हैं। ताकि अभिभावक पुरानी किताबें न खरीद सकें और ना ही किसी दूसरे विद्यार्थियों से ले ही सके। शासन के आदेश है कि निजी स्कूलों में एनसीईआरटी की पुस्तकें पाठ्य क्रम में शामिल की जाएं, लेकिन यह नियम प्राइवेट स्कूल में लागू होते नहीं दिखाई दे रहा है।

 

निजी स्कूल संचालक पूरी तरह से मनमानी पर उतारू हैं। नया सत्र प्रारंभ होते ही यूनिफार्म, जूता, मोजा के साथ ही किताबें और पाठ्यक्रम के नाम पर कमीशनखोरी का खेल शुरू हो गया है। सुबह से शाम तक किताब विक्रेताओं के यहां अभिभावकों और बच्चों की भीड़ जुटी है। बेहतर शिक्षा के नाम पर अभिभावकों की जेब खाली कराई जा रही है।

 

हकीकत यह है कि स्कूल संचालकों ने कॉपी किताबों के लिए दुकानों से सेटिंग कर रखी है, कुछ स्कूलों में खुद ही संचालक किताबें उपलब्ध करा रहे हैं। यहां वह दुकानों से आने वाले कमीशन का पूरा फायदा उठा रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इन निजी स्कूल संचालकों पर किसी भी तरह का कोई अंकुश नहीं है। अच्छी शिक्षा और व्यवस्था के नाम पर अभिभावकों का शोषण लगातार कर रहे है। हर वर्ष स्कूल संचालक किताबें बदल दे रहे हैं। साथ ही इन किताबों के दामों में बढ़ोतरी करते हुए मनमानी कर रहे हैं।

 

इन स्कूल संचालकों की कमीशनखोरी का खेल सिर्फ किताबाें तक ही सीमित नहीं है। ड्रेस, जूते, मोजे, टाई, बेल्ट पर भी कमीशन लिया जा रहा है। पहले ही संचालकों ने दुकान चयनित की हैं, वहीं उनके स्कूल की किताबें मिलेंगी। इसके अलावा अन्य बुक सेलराें पर किताबें नहीं मिल पाएंगी। यहीं से ड्रेस आदि भी खरीदने होंगे। इतना ही नहीं निजी स्कूलों में हर साल किताबें बदली जा रही हैं। जिससे कि बच्चे पुरानी किताबें लेकर पढ़ने न आए। इससे स्कूल संचालकों को कमीशन का नुकसान होगा। ड्रेस भी अधिकांश स्कूल की बदल ही जाती है। उसमें भी दो तरह की ड्रेस चल रही हैं।

 

बगैर नंबर प्लेट की मारुति वैन में जा रहे बच्चे

 

जिले के निजी स्कूलों के संचालकों की मनमानी चरम पर है. जहां अभिभावकों के साथ विद्यार्थियों का भी शोषण करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। स्कूलो में बच्चों को आने जाने के लिए स्कूल प्रबंधन द्वारा वाहनों की व्यवस्था भी की गई, जिसमे शिक्षण शुल्क के अलावा वाहनों का शुल्क अलग व मनमाने तरीके से लिया जा रहा है। जिसका कोई निश्चित मापदंड ही नहीं है। निजी स्कूलों में शिक्षा विभाग के नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही है।

 

स्कूल संचालक की नजर में नौनिहालों के जान की कीमत कुछ भी नहीं है

 

स्कूल संचालक द्वारा शिक्षा विभाग एवं यातायात विभाग के नियमों को ताक में रखकर मनमानी की जा रही है. स्कूल वाहन में क्षमता से अधिक बच्चों को बैठाने पर न तो अभिभावक ध्यान दे रहे हैं और न ही शिक्षा विभाग के जिम्मेदार अधिकारी। ऐसे में रोजाना बच्चे अपना जिंदगी दांव पर लगाकर पढ़ाई करने को मजबूर हैं।

 

स्कूली वाहनों में आने-जाने वाले बच्चे किस हालात में अपने घर और स्कूल को जाते हैं. इस बात की जानकारी अभिभावकों को भी नहीं रहती है इसका फायदा स्कूल वाले उठाते हैं

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