प्रकृति के प्रकोप से बचने के लिए प्राकृतिक सुंदरता को बचा कर रखने में ही इंसान की भलाई:- विक्रम दयाल

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लेख :जमीन, आकाश, पानी, हवा और अग्नि. इन पांच तत्वों के बिना इंसान या कोई जीव जिंदा नही रह सकता. जरूरत सभी को प्राकृतिक तत्वों की होती है. धरतीवासियों के लिए इन पांच तत्वों की बहुत ही जरूरत होती है. एक भी तत्व की कमी अगर जीवन में हो जाये तो जीवन समाप्त हो जाता है. प्रकृति के अंदर प्राकृतिक खनिज पदार्थों के लिए भी इन स़भी तत्वों की जरूरत पड़ती है. प्राकृतिक पर्यावरण के लिए भी इन पांच तत्वों की आवश्यकता पड़ती है. जमीन पर रहने वाले स्थावर और चलने वाले जीव-जंतुओं के लिए भी सभी तत्वों की आवश्यकतााये प्रतिदिन होती है. एक भी तत्व की कमी जीव जंतु सहन नही कर सकते है. और प्राण त्यागना पड़ जाता है. न अधिक न कम जरूरत के अनुसार आवश्यकता के अनुसार हर तत्वों की जरूरतें सभी को है. इन पांच तत्वों पर किसी का दबाव किसी का प्रभाव नही चलता है. शक्त और अशक्त सभी को बिना मूल्य प्रतिदिन मिलती रहती है. इसविए पृथ्वी पर वसने वाले सभी जीव-जंतु प्रकृति में स्वेच्छा से कहीं पर भी विचरण कर सकते हैं, और जिंदा रहने के लिए स्वांस ले सकते हैं.
जंगलों में लगी आग या धरती के अंदर से निकलती ज्वाला पर काबू पाने के लिए इंसानी ताकतें फेल हो जाया करती है. कुदरती करिष्माई ही जंगली आग या धरती के अंदर से निकलती ज्वाला पर काबू पा सकती है. शासन और प्रशासन के सारे तंत्र बेकार साबित होते है.
सभी को खुशहाल रखने वाली धरती, सबको सुख समृद्धि से भरने वाली धरती, अन्न, फल-फूल, और रत्न के भंडारों से सबको सुसज्जित करने वाली धरती, बड़ी बड़ी इमारतों का बोझ उठाने वाली धरती, मानव के हर ख्वाहिशों को देने वाली धरती, इंसान और हर जगतके प्राणियों को अपने आंचल में ढ़कने वाली धरती,
यदि कभी हिल गई, या डोल गई तो एक ही पल में सबकुछ मिट जाता है. उसे कोई बचा नही पाता है. उठता हुआ हवाओं का बवंडरी तूफान एक पल में ही आलीशान दुनियाँ को खंडहर में बदल सकता है. जिसे रोकने की ताकत किसी के अंदर नही है.
पहाड़ों से लेकर मैदानों तक की खुशियाँ हर साल बारिस का मौसम जब आता है, तब लेकर चला जाता है. दरकते पहाड़,
पिघलते ग्लेशियर, चूर चूर होकर गिरती पर्वत शृंखलायें, पहाड़ियों पर बने मकानों में दरारें, नदियों में बाढ़, गिरते हुए पेड़ पौधे और वृक्ष गिरते हुए ढहकर बह जाते हैं. हर साल इस संकट से बचने के उपाय के बावजूद संकट पर संकट गहराते ही चला जाता है. क्यों कि प्राकृतिक संकट के आगे आदमी बेबस होजाता है. और न चाहते हुए मौत के मुंह में चला जता है. बेतहासा बढ़ती हुई गर्मी इंसान और जानवर दोनों को झुलसा देती है. इंसान इस गर्मी
से बचने के लिए बहुत कुछ उपायों के द्वारा थोड़ी राहत जरूर पा लेते हैं. मगर फिर भी उन्हें गर्मी का मौसम मजबूर कर देता है. वह गर्मी से निजात पाने के लिए अनेकों प्रकार के उपाय करते हैं. मगर फिर भी पूरी तरह सुरक्षित नही हो पाते हैं. जानवरों को कोई सहरा नही मिलता. वे बेचारे जंगली पेड़ों के छांव में नीचे बैठ कर आराम कर लेते हैं. मगर देखा जाय तो अब जंगल बचे ही कहाँ है? सब इंसान जंगल को अपने फायदे के लिए काट दिये या नष्ट कर दिये. इसलिए गर्मी का प्रकोप हर गर्मी के मौसम में इंसान और जानवरों को उठाना पड़ता है. इंसान काटे गये पेड़ों के बदले नये पेड़ पौधे लगाते नही हैं इसलिए इंसानी जीवन को अनेको कष्ट झेलने पड़ रहे हैं. प्रकृति के बढ़ते प्रकोप से बचने के लिए हमें अब एकजुट होकर प्राकृतिक संरक्षण करना अनिवार्य हो गया है. खाली पड़ी बेकार पड़ी जमीनों पर आइये मिलकर पेड़ लगायें. और प्राकृतिक सुंदरता को बचा कर रखें और आने वाले समय में प्रकृति के प्रकोप से बचें l

 

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