अख़बार की रद्दी और ज़बान की अहमियत जाने  एस.एन.लाल

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आज का तज़ा लेख

अख़बार की रद्दी से ज़बान (भाषा) की अहमियत (महत्व) मालूम होती है।

उर्दू अख़बार की रद्दी 12 से 15 रु0 किलो, हिन्दी अख़बार की रद्दी 15 से 18 रु0 किलों और अंग्रेज़ी अख़बार की रद्दी 20 से 24 रु0 किलों….!
बस यही फर्क है, भारत में भाषा की अहमियत में । अंगे्रज़ी जानते है, तो नौकरी आसानी से और अच्छी सेलरी के साथ मिल जायेगी। वही अगर हिन्दी जानतें है जोकि सभी जानते है तो नौकरी तो मिल ही जायेगी लेकिन सेलरी कितनी ये सामने बॉस पर डेपेन्ड है, और अगर कहीं सिर्फ उर्दू जानते हो…. तो आधी उम्र नौकरी (ज़रियेमाश) ढ़ूढ़ने में निकल जायेगी, मिल भी गयी तो जो सेलरी मिल जाये वह ठीक….! कहीं अगर दीन (धर्म से जुड़ा) के काम नौकरी की मिल गयी..तो कम से कम सेलरी क साथ हज़ारों फतवे व ताने बस उसी में पूरी जिन्दगी गुज़ारा पड़ती है।
एस.एन.लाल
बस…….. उर्दू गानांे और ग़ज़लों के रुप में कानों को अच्छी लगती है या महबूबा की तारीफ करने में शेरो की शक़्ल में….! इससे ज़्यादा उर्दू से हमारी वाक़फियत नहीं रही है। बज़ाहिर तौर पर उर्दू से मोहब्बत करने वाले सेमिनारों में बातें तो बहुत करेंगे…, लेकिन जो उर्दू पढ़ा है या उर्दू की ख़िदमत कर रहा है, उसका कोई पुरसाने हाल नहीं। बहरहाल मन में आया तो लिख दिया!

 

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