चुनावी विगुल बजने के बाद जहाँ जहाँ चुनाव होने वाले हैं या हो रहें हैं वहाँ वहाँ के क्षेत्रों में पक्ष या विपक्षी दलों के लोग अपने अपने अजेंडों के साथ जनता को लुभाने के लिए अनेक प्रकार के लुभावने हथकंडे अपनाने में जुट गये हैं. जोड़ तोडं की गणित तो कुछ ज्यादा ही होने लगी है. कुछ नये चेहरे तो कुछ पुराने चेहरों के साथ सभी दल के अग्रणी नेता अपने नेतृत्व की शुरुवात करदी है. एक दूसरे की जमकर बुराई करते नेता लोग मतदाताओं के पास घर घर जाने लगे हैं.
चुनाव एक त्यौहार के जैसा भारत में आता है.
नेताओं के कदम उन बस्तियों में भी पहुँच जाते हैं जहाँ कभी उनके कदम की पहुँच नही होती हैं. टूटी फूटी झोपडिंयों में, गंदी से गंदी बस्तियों में, भी नेताओं का दर्शन मतदाता पाकर खुद को धन्य समझते हैं. क्यों कि शायद उन मतदाताओं के भाग्य बदलने वाले हों? गांवों में अभी भी बहुत ऐसे गरीब हैं जिनके चुल्हे रोज नही जलते हैं. कभी कभार ही जलते हैं. अगर ऐसे गाँव में गरीबों के दरवाजे पर कोई नेता पहुँचता है तो वह गरीब अपने को धन्य ही समझेगा. शायद नेताजी के द्वारा उस गरीब का भला हो जयेगा?. परन्तु ऐसा नही होता है. नेताजी तो केवल मत लेने के लिए उसके द्वार पर पांच साल में एकबार के लिए गये हैं?
वोट मिलने के बाद नेताजी उस बस्ती या गांव को भी भूल जायेगें, जहाँ से उन्हें कभी विजयश्री मिली हुई थी. चुनाव के त्यौहार धीरे धीरे बीत रहे हैं, और नेताजी भी उस गाँव की गली को भी भूलने में लगे हुए हैं. चुनावी दंगल में एक दूसरे को सत्ता से दूर रखने की भरपूर कोशिष दोनों पक्ष करते हैं. एक दूसरे की जम कर बुराई करना, और जनता के बीच जाकर केवल अपनी ही बड़ाई करना, हर एक नेता अच्छी तरह जानता है. भूल चुकी जनता के सामने वर्षों की बीती हुई बातें याद दिलाना आज के नेताओं का पहला काम है. कभी अच्छे कर्म की बातें याद नही दिलाते हैं. लेकिन अगर कुछ गलत हुआ है तो उसे ताजा खबर बना कर जनता के सामने जरूर प्रस्तुत करेंगे. जनता भी अब सब सही गलत का हिसाब रखती है. जनता जानती है और पहचानती भी है, कौन अच्छा है? और कौन बुरा है? किसी के बहकावे में अबके मतदाता नही आने वाले है. आजकल के मतदाता अपना बेशकीमती वोट उसे ही देगें जो जनमानस का भला करने वाला नेता हितैशी है. मुख्य मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाना, हर एक मीटिंग में केवल
हिंदू-मुस्लिम की चर्चा करना, हर समय केवल धार्मिक मुद्दों को ही भुनाना, मंदिर-मस्जिद की ही बात करना, क्या इन सब विषय के अलावा जनता को विश्वास में लेने के लिए अन्य कोई दूसरा विषय नही है? मंहगाई पर बात नही होगी, नौकरी की बात नही होगी, रोजगार पर बात नही होगी, किसानों की बात नही होगी, जब भी चुनाव आता है तो केवल हिंदू मुस्लिम की ही बातें होगी.
देशको समृद्धि और शक्तिशाली बनाने की बातें होनी चाहिए, औरतों और बच्चियों के स्वाभिमान को बचाने की भी बातें होनी चाहिए. गरीबी मिटाने की बातें होनी चाहिए. देश को आत्मनिर्भर बनाने की बातें होनी चाहिए. बहुत सारे मुद्दे हैं. जो देश को आगे बढ़ने में सहायक सिद्ध होते हैं, उन सभी मुद्दों की बात होनी चाहिए. आजके मतदाता काम करने वाले नेता को ही अपना मत देगें?. जो नेता काम करेगा वही चुनावी दंगल में बाजी मारेगा.
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