नई नई ट्रेनों की घोषणायें, बढ़ती भीड़ से हुई पस्त योजनायें- विक्रम दयाल

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मुंबई अमन की शान : देश में नई नई ट्रेनों की संख्यायें बढ़ रही हैं. मगर यात्रियों की संख्याँ उसी रफतार से बढ़ती ही जारही है. प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा जो भी ट्रेन बढ़ाई जारही हैं या चलाई जारही हैं उसमें AC SLEEPER Reserve डिब्बों की संख्यायें अत्यधिक हैं. उन गाड़ियों में GENERAL डिब्बों की संख्याँ कम होती है. ट्रेन में सफर करने वाले अभी भी बहुत लोग ऐसे हैं जो रिजर्व टिकट नही लेते हैं. क्यों कि वे अथिकतर मजदूर लोग ही हैं जिन्हें अपने घर आने जाने में तत्काल ही समय मिलता है. उन्हें केवल सीट से ही मतलब है. अगर ट्रेन में उन्हें बैठने की जगह मिल गई तो वही उनके लिए अच्छा है. केवल उन्हें अपने घर जाने की जल्दी रहती है. ट्रेन में उन्हें सो कर जाने की कोई जरूरत नही होती है. क्यों कि उन बेचारों को तो नित्य खुले आसमान में, कड़ी धूप में, कड़ाके की ठंड में, तूफानी वर्षा में काम करना ही होता है.

वे आराम से नही सफर करना चाहते हैं. केवल ट्रेन में बैठकर ही सफर करना चाहते हैं. इसलिए ट्रेन में GENERAL बोगियाँ कुछ अधिक रहेंगी तो तत्काल सफर करने वालों को बैठने की जगह तो मिल ही जाया करेगी. फसलों की बुआई और कटाई के समय और त्यौहारों के अवसरों को देखते हुए रेलवे को गाड़ियों में जनरल बोगियाँ बढ़ा देनी चाहिए. ताकी किसान और मजदूर अपने गांव आसानी से ट्रेनों में बैठ कर सफर कर सकें. मुंबई के बांद्रा स्टेशन पर घटी ताजी घटना सोचने के लिए मजबूर कर दे रही है. तीव्रगति, अति तीव्रगति से चलने वाली अमृत भारत, वंदे भारत, नमो भारत, नई नई ट्रेने अब देश के हर कोने में दौड़ने लगी हैं.!

ट्रेन में सफर करनेवाले लोगों का जीवन खुशहाल होगया है. क्यों कि अब जनता को सफर करने में बडा़ आनंद आने लगा है. लोग अपनी यात्रायें तीव्रगति से पूरा करते हुए अपनी चुनी हुई जगहों पर बड़े ही शान से सोते उठते बैठते पहुँच रहे हैं.

एसी और स्लीपर में अच्छी सुविधायें हैं, भोजन और स्वच्छता की खास सेवायें है. ट्रेन का परिचालन तेज होने के साथ साथ गाड़ियाँ रद्द या CANCEL भी होने लगी है. यात्री ट्रेन पकड़ने के लिए स्टेशन पर एक आध घंटे पहले जाते हैं. वह इसलिए की उनकी ट्रेन छूट न जाये. लेकिन बहुत इंतजार करने के बाद जब दश मिनट या पांच मिनट पहले पता चलता है कि वह जिस गाड़ी से सफर करने वाले हैं वह ट्रेन रद्द हो गई है. तब उन्हें वापस घर जाने में बड़ी से बड़ी मुसीबतों का सामना करना पडंता है. रेलवे को यात्रियों की इन गंभीर तकलीफों के बारे में पता नही होता है. उन्हें तो केवल तीन महीने चार महीने पहले लिए हुए ट्रेन टिकट को रद्द करना होता है.

वह यात्रियों की गंभीर तकलीफें एक झटके में भूल जाते हैं. लेकिन मजदूरों को जो तकलीफें तब उठानी पड़ती थी, वही तकलीफें आजभी उठानी पड़ रही है. ट्रेनों की संख्याँयें तो बढ़ रही हैं मगर तकलीफों में कोई कमी नही आरही है. अब चलती हुई ट्रेन में हादसे भी होने लगे हैं. शरारती लोग ट्रेन की पटरियों पर अवरोधक खड़े कर रहें हैं. दौड़ती हुई ट्रेन पटरियों से उतर जारही हैं. आपस में ट्रेनों के टक्कर भी होने लगे हैं. शरारती लोग ट्रेन को बहुत बड़ा नुकसान पहुँचाने लगे हैं. अबतो यात्री जान हथेली पर लेकर ट्रेन में सफर करने को मजबूर हो रहे हैं!

 

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