अमन की शान : महाराष्ट्र(मुम्बई ) देश में कुछ न कुछ महीनों के अंतराल पर चुनाव की तारीखों का एलान हो ही जाता है. चाहे छोटा हो या बड़ा चुनाव. पक्ष और विपक्ष उस चुनाव को जीतने के लिए नई नई भूमिकायें या यूँ कहें कि योजनायें बनाने लगते हैं. चुनावी विगुल बजने के बाद से ही जहाँ चुनाव होने वाले हैं वहाँ वहाँ के क्षेत्रों में पक्ष या विपक्षी दलों के लोग अपने अपने एजेंडों के साथ जनता को लुभाने के लिए अनेक प्रकार के लुभावने हथकंडे अपनाने में जुट जाते हैं. वे सभी एकदूसरे को जोड़ने और तोड़ने की गणित में माहिर नेता जोड़ तोड़ की गणित लगाना शुरू कर देते हैं. एक दूसरे की कमियों को निकाल कर जन सभाओं में सार्वजनिक करने लगते है. जन सभाओं के द्वारा जनता का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए, लुभावने और लच्छेदार भायणों की भरमार करने लगते हैं. कुछ नये चेहरे तो कुछ पुराने चेहरों के साथ सभी दलों के अग्रणी नेता अपने अपने नेतृत्व की शुरुवात करने लगते है. एक दूसरे की जमकर बुराई अपनी जनसभाओं में करने लगते हैं. मतदाताओं को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए नेता लोग मतदाताओं के घर घर जाने लगते हैं और उनके पैर पकड़ कर आशिर्वाद भी लेने लगते हैं. टीवी और मीडिया भी जमकर उनके गुणगान में जुट जातीं हैं. तारीफों के पुल और चर्चाओं लिप्त हो जाती हैं l
देश का चुनाव एक त्यौहार के जैसा भारत में आता है. नेताओं के कदम उन बस्तियों में भी पहुँचने लगते हैं जहाँ कभी चाहकर भी वह नही पहुँच पाते हैं. टूटी फूटी झोपडिंयों में, गंदी से गंदी बस्तियों में, दूर दराज के गांवों में, जहाँ राहें नही पगडंडी है, जहाँ केवल गर्मी है. और थंडी नही. केवल मतों के लिए पहाड़ों पर चढ़ जाने वाले नेता अपना दर्शन उनलोगों को भी देते हैं. जहाँ से वह खुद के लिए वोट खीचने में सिद्धहस्त होते हैं. नेताओं का दर्शन मतदाता पाकर खुद को धन्य समझते हैं. क्यों कि शायद उन मतदाताओं के भाग्य अब बदलने वाले हों? गांवों में अभी भी बहुत ऐसे गरीब हैं जिनके चुल्हे कभी कभार ही जलते हैं. अगर ऐसे गाँव में गरीबों के दरवाजे पर कोई नेता पहुँचता है तो वह गरीब अपने को धन्य ही समझेगा?.
शायद नेताजी के द्वारा उस गरीब का भला हो जयेगा?. परन्तु ऐसा कभी होता ही नही है. नेताजी तो केवल मत लेने के लिए उसके द्वार पर पांच साल में एकबार के लिए गये हैं? वोट मिलने के बाद नेताजी उस बस्ती या गांव को भी भूल जायेगें, जहाँ से उन्हें कभी विजयश्री मिली हुई थी. चुनाव के त्यौहार धीरे धीरे बीत रहे हैं, और नेताजी भी उस गाँव की गली को भी भूलने में लगे हुए हैं. चुनावी दंगल में एक दूसरे को सत्ता से दूर रखने की भरपूर कोशिषें दोनों पक्ष कर रहें हैं. एक दूसरे की जम कर अधिक से अधिक बुराई करना, और जनता के बीच जाकर केवल अपनी ही बड़ाई करना, हर एक नेता अच्छी तरह जानता है. भूल चुकी जनता के सामने वर्षों की बीती हुई बातों को याद दिलाना आज के नेताओं का पहला काम है.
वह इसलिए कि प्रतिद्वंदी कभी जीतकर जनता के बीच आही नही सके? विपक्ष के द्वारा किये गये अच्छे कर्म की बातों को वह कभी याद ही नही दिलाते हैं. लेकिन अगर कुछ गलत हुआ है तो उसे ताजा खबर बना कर जनता के सामने जरूर प्रस्तुत करेंगे. जनता भी अब सब सही गलत का हिसाब रखने लगी है. जनता जानती है और पहचानती भी है, कौन अच्छा है? और कौन बुरा है? किसी के बहकावे में अबके मतदाता नही आने वाले है. क्यों कि आजकल के मतदाता अपना बेशकीमती वोट उसे ही देगें जो नेता समाज में जनमानस का भला करने वाला और हितैशी है l
मुख्य मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाना, हर एक मीटिंग में केवल हिंदू-मुस्लिम की चर्चा करना, हर समय केवल धार्मिक मुद्दों को ही भुनाना, मंदिर-मस्जिद की ही बात करना, क्या इन सब विषय के अलावा जनता को विश्वास में लेने के लिए अन्य कोई दूसरा विषय या मुद्दा नही रह गया है? मंहगाई पर बात नही होगी, नौकरी की बात नही होगी, रोजगार पर बात नही होगी, किसानों के हित की बात नही होगी. केवल और केवल समाज और जनता को गुमराह करने की बातें वोट के लिए ज्यादा से ज्यादा होने लगी है l
देश में चुनाव आते ही धार्मिक मुद्दे गरमाने लगते हैं. हिंदू मुस्लिम की बातें होने लगती हैं. बढ़ती हुई मंहगाई पर बात नही होगी. बढ़ती हुई गरीबी पर बातें नही होगी. बढ़ते हुए अत्याचार पर बातें नही होगी. महिलायों पर बढ़ते बलात्कार और शोषण पर बात नही होगी. औरतों और बच्चियों के स्वाभिमान को बचाने की भी बातें होनी चाहिए. गरीबी मिटाने की बातें होनी चाहिए. देश को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने की बातें होनी चाहिए. बहुत सारे मुद्दे हैं. जो देश को आगे बढ़ने में सहायक सिद्ध होते हैं, उन सभी मुद्दों की बातें होनी चाहिए. आजके मतदाता काम करने वाले नेता को ही अपना मत देगें?. जो नेता काम करेगा वही आगे आने वाले या होने वाले सभी चुनावी दंगलों में बाजी मारेगा.