अमन की शान महाराष्ट्र मुम्बई : जिस फसल को करने में अधिक से अधिक मेंहनत करनी होती है, फायदा रहते हुए भी किसान उसे छोड़ते जा रहे हैं. कम लागत में और आसानी से पैदा होने वाली फसलें किसान अब उगाने में दिलचस्पी दिखाते हैं. जिन ग्रामीण क्षेत्रों की पहुँच चीनी मील तक होती है, वहाँ के किसान गन्ने की खेती करते हैं. और जिन ग्रामीण क्षेत्रों के आसपास कोई गन्ने की मील नही होती है वहाँ के किसान अब गन्ने की खेती लगभग छोड़ चुके हैं. बहुत सारे गांवों से गन्ने की बुवाई लगभग खत्म होती जारही है. जहाँ कहीं अब चीनी मीलें हैं वहीं के किसान गन्ने की फसल लगा रहे हैं, या उगा रहें हैं. पहले के समय में दीपावली का त्यौहार बीतने के बाद से ही गांव गांव में गन्ने का रस निकालने के लिए कोल्हू गड़ जाया करता था. तब गांव गांव में गुड़ बनाने की प्रक्रियायें शुरू हो जाया करती थी.
गांव से होते हुए निकलने वाले रास्तों में गुड़ की ताजी ताजी महक मन को लुभा लिया करती थी. जिन गांवों में पहले ठंडी के महीनों में लोग रात में जाग जाग कर गुड़ बनाते थे, अब उन्हीं गांवों में लोग गन्ने के ताजे शर्बत पीने के लिए तरस रहे हैं. आज उन घरों में गुड़ का दर्शन नही होरहा है. पहले गांव से गुजरने वाले राहगीर जहाँ कहीं कोल्हू चलता था, बिना पैसे के भरपेट गन्ने का रस पी लिया करते थे, उन्हे भोजन की आवश्यकता नही होती थी. अब उन्हीं घरों के बच्चे, जवान और बूढ़ों को गन्ने का ताजा रस पीने को नही मिल रहा है. अब बाजारों में गन्ने का शर्बत बेचने वाले छोटी छोटी दुकानें खोलकर बैठें हैं जिसे गन्ने का रस पीना है वह खरीद कर ही पीये. जिन गांवों के लोग गन्ने का ताजा रस और ताजा गुड़ पा लिया करते थे अब उन्हे नशीब नही हो रहा है. क्योंकि गांवों के किसान गन्ने की खेती करना छोड़ दिये हैं. बैलों का पालन करना छोड़ दिये हैं. गायों का पालन करना छोड़ दिये हैं. बिना मेंहनत के पैदा होने वाली फसलों को ही किसान उगाना चाहता है. आधुनिक युग में अब किसान मशीनों से ही खेती करना सीख लिया है!
घर में खपत होने वाला राशन सरकार देरही है. बिना किसी तकलीफ के गुजारा हो रहा है. कभी मेहनतकश किसान के नाम से पहचान रखने वाला वही किसान, आज पंगु बनकर रह गया है. हर घर में दूध और घी, हर घर में गुड़ और खांड़, हर समय मौजूद रहता था अब उन घरों में दूध, घी, शक्कर, बिना खरीदे नही मिलता है. नही चाहते हुए भी अब किसान हो या कोई और वह सभी अब खरीदारी करते समय जीएसटी का भुगतान करता ही है. खेती करने वाला किसान या खेती नही करने वाले सभी किसान जीएसटी अदा कर रहे हैं!
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