देश में इस झूठे नरेटिव को लगभग स्थापित कर दिया गया है कि मुगल बादशाह बाबर और औरंगजेब मंदिरों को तोड़ा करते थे। इसके बावजूद कि उच्चतम न्यायालय ने बाबरी मस्जिद के फैसले में स्पष्ट रूप से लिखा है कि मुगल बादशाह बाबर ने अयोध्या में कोई मंदिर नहीं तोड़ा। इस फैसले के बावजूद गिरोह तो छोड़िए न्यायप्रिय समाज के लोग भी गाहे बगाहे यह बोल ही देते हैं कि “मुगलों से हुई गलतियों का बदला आज के दौर में नहीं लिया जा सकता” और यह कल मुसलमानों के हालात पर आन कैमरा रो रहे देश के जाने माने वकील दुष्यंत दवे जैसे लोग कह रहे हैं। नरेटिव का असर यही होता है कि उच्चतम न्यायालय द्वारा मुग़ल बादशाह बाबर को राम मंदिर को तोड़ कर वहां बाबरी मस्जिद बनाने के आरोप से दोषमुक्त किए जाने के बावजूद देश यह मानने के लिए तैयार ही नहीं है कि मुगल बादशाह बाबर ने अयोध्या का राम मंदिर नहीं तोड़ा। मुगलों में दो बादशाह गिरोह के गढ़े झूठे नरेटिव के शिकार हो गये। उसमें एक हैं बाबर और दूसरे औरंगजेब। मुग़ल बादशाह बाबर मात्र 4 साल भारत के बादशाह थे, इसके बाद उनकी मृत्यु हो गयी, और अपनी जीवनी “बाबरनामा” में देश के हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं का ख्याल रखने की तमाम वसीयत कर गये बाबर आज झूठे गढ़े नरेटिव में देश के तमाम मंदिरों को तोड़ने वाले हिंदूकुश हो गये। इसके बावजूद कि अफ़ग़ानिस्तान पर बाबर के 19 साल राज करने के बाद भी बामियान में बुद्ध की दो विशाल मुर्तियां सुरक्षित रहीं। हैरानी होती है कि भारत में अपने चार साल की हुकूमत में जगह जगह मंदिर तोड़ते मुग़ल बादशाह बाबर को काबुल से चंद दूरी पर स्थित 55 मीटर अर्थात 180 फिट ऊंची बामियान की मुर्तियां नहीं दिखाई दीं और वह उनके 19 साल के राज में सुरक्षित रहीं।
दरअसल सांप्रदायिक ताकतों को अपनी राजनीतिक ज़मीन तैयार करने के लिए और मुस्लिम विरोधी राजनीति करने के लिए एक दो ऐसे मुस्लिम बादशाहों की ज़रूरत पड़ी जिन्हें हिंदूकुश और मंदिर भंजक बताकर नरेटिव सेट किया जा सके।वर्ना क्या कारण है कि यह भी नहीं देखा गया कि औरंगज़ेब के दरबार में आधे पदाधिकारी ब्राह्मण हिंदू थे, उनकी दो पत्नियां नवाब बाई और उदयपुरी हिन्दू थीं और वह मृत्यु तक हिंदू ही रहीं, औरंगजेब ने जबरन उनका धर्मांतरण नहीं कराया, बादशाह थे करा सकते थे। औरंगजेब ने खुद अपने बेटे को लिखे एक खत में उदयपूरी की इस इच्छा का खुलासा किया कि “उदयपूरी उनसे से इतना प्यार करती हैं कि वह उनके के साथ सती होने की बात करती हैं”। यहां तक कि औरंगज़ेब का पहला प्यार भी एक हिंदू नर्तकी हीराबाई थीं, लेकिन एक साल बाद ही हीराबाई की मौत के साथ इस प्रेम कहानी का अंत हो गया।
दरअसल देश के बहुसंख्यकों के दिमाग में कुछ अरबी शब्दों को हिंदू विरोधी बताकर हिंदूकुश का नरेटिव गढ़ दिया गया है जिसमें जज़िया, फतवा, काफ़िर और जेहाद प्रमुख हैं। जबकि जज़िया कर मुख्यतः राज्य के हिंदुओं को 6 तरह के लागू इस्लामिक कर से बचाने के विकल्प के तौर पर लगाया गया, मगर इसे भी हिन्दू विरोधी मान लिया गया। दरअसल औरंगजेब भी ना तो हिन्दू विरोधी थे ना ही मंदिर भंजक, हालांकि काशी के मंदिर का उदाहरण मौजूद है तो गोलकुंडा की मस्जिद का उदाहरण भी मौजूद है, जो अपराधिक घटनाओं के कारण अपवित्र हुईं और तोड़ दी गयीं, उसी तरह जैसे इंदिरा गांधी ने स्वर्ण मंदिर को तोड़ा था। औरंगजेब के प्रमुख सेनापति तो एक हिंदू राजपूत “राजा जय सिंह” थे और यह औरंगज़ेब के सबसे भरोसेमंद सेनापतियों में से एक थे। बड़ी अजीब बात है कि औरंगज़ेब के सबसे विश्वसनीय और सबसे बड़े सेनापति हिंदू के रहते औरंगजेब हिन्दू कुश थे और राजा जयसिंह चुपचाप यह सब देखते रहे, एक शब्द भी नहीं बोले।
ध्यान दीजिए कि राजपूत राजा जयसिंह औरंगजेब की सबसे बड़ी सेना के सेनापति थे, जो औरंगजेब के हिंदू विरोधी होने पर विद्रोह कर देते तो औरंगजेब की बादशाहत खत्म हो जाती। और फ़िर औरंगजेब को मंदिरों और हिन्दुओं से इतनी चिढ़ थी तो उन्होंने देश में तमाम मंदिरों के लिए ज़मीन और जागीरें क्यों दीं? जबकि कट्टर इस्लामिक होने के बावजूद एक मस्जिद को ज़मीन और जागीरें दीं हो इसका उदाहरण तो नहीं मिलता। औरंगजेब को यदि ब्राह्मणों से इतनी चिढ़ थी कि सवा मन मन जनेऊ तौल कर रात का भोजन करते थे तो जज़िया कर से ब्राह्मणों को छूट क्यों दी थी ? उनके आधे मंत्री और दरबारी ब्राह्मण क्यों थे ? लोग इतना भी नहीं सोचते कि 1.25 मन अर्थात 50 किलो प्रति दिन जनेऊ जलाने से 51 साल के औरंगजेब के शासन में भारत की धरती ब्राह्मणविहीन नहीं बल्कि हिंदू विहीन हो जाती क्योंकि तब भारत की जनसंख्या मात्र 15 करोड़ थी जो 9.18 लाख किलो जनेऊ के लिए कम थी। दरअसल औरंगजेब पर तमाम हिन्दू कुश होने के आरोप केवल राजनीतिक उद्देश्य से लगाए जाते हैं, और यदि औरंगजेब हिन्दू, मंदिर कुश होते तो “बाला जी मंदिर” का निर्माण नहीं कराते, उस मंदिर के भोग के लिए तमाम गांव जागीर के रूप में नहीं देते। चित्र में चित्रकूट के बालाजी मंदिर के मुख्य पुजारी त्रिभुवन दास के हाथों में औरंगजेब के लिखे ताम्रपत्र की कॉपी पढ़ लीजिए।दरअसल इतिहासकार और इलाहाबाद नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष,इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के इतिहास के विभागाध्यक्ष और उड़ीसा के राज्यपाल रहे प्रोफेसर वी एन पांडे ने इस विषय पर न्यायमूर्ति सप्रू की अध्यक्षता वाली समिति के समक्ष तमाम ऐसे साक्ष्य प्रस्तुत किए जिसमें औरंगजेब ने मंदिरों को बनाने के लिए धन दिया, ज़मीन और जागीरें दीं।
यही नहीं प्रोफेसर वी एन पांडे ने समिति के सामने जो सबूत प्रस्तुत किया कि उनमें न केवल हिंदू मंदिरों को बल्कि जैन मंदिरों और सिख गुरुद्वारों को भी मुगल बादशाह औरंगजेब के उन फरमान की प्रतियां प्रस्तुत करवाईं जिसे उनके राज में मदद की गई। यहां तक कि प्रोफेसर वीएन पांडे को कई प्रसिद्ध और प्रमुख हिंदू मंदिरों, जैन मंदिरों और सिख गुरुद्वारों, जिनके पास मुगल राजा औरंगजेब के शाही आदेश थे , उन्होंने उपलब्ध कराए जिसके तहत उन्हें 1659 और 1685 की अवधि के दौरान भूमि और जागीरें प्रदान की गईं, जिनमें कृषि भूमि के बड़े हिस्से शामिल थें।
प्रोफेसर वीएन पांडे ने जो सबूत न्यायमूर्ति सप्रू की अध्यक्षता वाली समिति के समक्ष पेश किया उसके अनुसार औरंगज़ेब ने 400 से ज्यादा मंदिरों के लिए ज़मीन दान की थी जिसमें गुवाहाटी का कामाख्या मंदिर , उज्जैन महाकाल मंदिर , पुरी का जगन्नाथ मंदिर भी उसी पर बना है। इलाहाबाद में संगम किनारे अरैल में स्थित सोमेश्वर महादेव मंदिर को भारी धन और जमीनें दीं और इसका उल्लेख मंदिर परिसर में स्थित “धर्म दंड” शिला लेख पर भी है। इसके अतिरिक्त गुवाहाटी के उमानंद मंदिर, मथुरा की दाऊजी महाराज मंदिर, सारंगपुर के जैन मंदिर और दक्षिण भारत के कुछ मंदिरों भी शामिल हैं जिनका निर्माण मुग़ल बादशाह औरंगजेब के धन और ज़मीन दान देने के कारण हुआ है।