देश की किसी भी अदालत में सुनवाई तक मंदिर-मस्जिद विवाद पर कोई नया केस, आदेश या सर्वे नहीं’, प्लेसेस ऑफ वर्शिप मामले पर बोला सुप्रीम कोर्ट; केंद्र से मांगा जवाब

सीजेआई ने कहा कि हम एक बात स्पष्ट करना चाहते हैं कि अगली सुनवाई तक कोई नई याचिका दायर नहीं हो सकती। कोर्ट ने सभी पक्षकारों से कहा कि वे अपने तर्क पूरी तरह तैयार रखें ताकि मामले को तेजी से निपटाया जा सके।

0 232

सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई हुई। सीजेआई ने स्पष्ट रूप से कहा कि इस मामले की अगली सुनवाई तक मंदिर-मस्जिद से जुड़े किसी भी नए मुकदमे को दर्ज नहीं किया जाएगा। देश की सबसे बड़ी अदालत में बुधवार को प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू हुई। इस मामले की सुनवाई सीजेआई जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के वी विश्वनाथन की विशेष बेंच कर रही है। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए। तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि सरकार इस मामले में हलफनामा दाखिल करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक केंद्र का जवाब दाखिल नहीं होता, तब तक मामले की सुनवाई पूरी तरह संभव नहीं है, साथ ही कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि मामले की सुनवाई के दौरान किसी भी तरह के नए मुकदमे दर्ज नहीं किए जा सकते।

प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट (Places of Worship Act), 1991

यह अधिनियम धार्मिक स्थलों की स्थिति को 15 अगस्त 1947 के आधार पर संरक्षित करता है और उसमें बदलाव करने पर रोक लगाता है। हालांकि, इसमें अयोध्या विवाद को बाहर रखा गया था। सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि विवाद से जुड़े फैसले का हवाला देते हुए कहा कि कई मुद्दे उठाए गए हैं, जिनकी विस्तृत जांच की जाएगी।

Places of Worship Act: सभी पक्ष अपने तर्क तैयार रखेंः सुप्रीम कोर्ट

सीजेआई ने कहा कि हम एक बात स्पष्ट करना चाहते हैं कि अगली सुनवाई तक कोई नई याचिका दायर नहीं हो सकती। कोर्ट ने सभी पक्षकारों से कहा कि वे अपने तर्क पूरी तरह तैयार रखें ताकि मामले को तेजी से निपटाया जा सके। पूजा स्थल अधिनियम, 1991, धार्मिक स्थलों की स्थिति को 15 अगस्त 1947 के आधार पर संरक्षित करता है और इसमें बदलाव करने पर रोक लगाता है। हालांकि, इस कानून में अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को बाहर रखा गया था। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए तारीख तय की है और तब तक स्थिति को यथावत रखने का निर्देश दिया है।

Places of Worship Act: सुनवाई के दौरान क्या रखे गए तर्क

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार की ओर से कहा कि सरकार हलफनामा दाखिल करेगी। सीजेआई ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वे अपना जवाब दाखिल करें और उसकी प्रति याचिकाकर्ताओं को दें। चीफ जस्टिस ने कहा कि इस मामले की विस्तृत सुनवाई नहीं होगी क्योंकि यह अभी लंबित है। कोर्ट यह भी स्पष्ट किया कि इस मामले से संबंधित कोई नया सूट दाखिल नहीं होगा। सीजेआई ने केंद्र को निर्देश दिया कि वे अपना जवाब दाखिल करें और उसकी प्रति याचिकाकर्ताओं को दें। उन्होंने कहा कि इस मामले की विस्तृत सुनवाई नहीं होगी क्योंकि यह अभी लंबित है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस मामले से संबंधित कोई नया सूट दाखिल नहीं होगा। सीजेआई ने कहा कि कई सवाल उठाए गए हैं, जिन पर अदालत सुनवाई करेगी। याचिकाकर्ता वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन ने कहा कि अलग-अलग अदालतों में कुल 10 सूट दाखिल हुए हैं और इनमें आगे की सुनवाई पर रोक लगाई जानी चाहिए। केंद्र सरकार ने इसका विरोध किया। एसजी तुषार मेहता ने कहा कि कोई भी प्राइवेट पार्टी सूट पर रोक लगाने की मांग कैसे कर सकती है। मुस्लिम पक्ष ने बताया कि देशभर में 10 स्थानों पर 18 सूट दाखिल किए गए हैं। उन्होंने अनुरोध किया कि जब तक प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं आता, सभी मामलों की सुनवाई पर रोक लगाई जाए। सुप्रीम कोर्ट ने उल्लेख किया कि मथुरा का मामला और दो अन्य सूट पहले से ही अदालत के समक्ष लंबित हैं।

Places of Worship Act: सुप्रीम कोर्ट ने नए और लंबित मामलों पर रोक लगाई

पूजा स्थल अधिनियम, 1991 में याचिकाओं पर सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि 1991 अधिनियम से संबंधित कोई भी नया मुकदमा या कार्यवाही शुरू नहीं की जानी चाहिए। मौजूदा मामलों में, न्यायालयों को प्रभावी या अंतिम आदेश जारी करने से रोक दिया गया है, जबकि मामला सर्वोच्च न्यायालय के विचाराधीन है। पूजा स्थल अधिनियम की सुनवाई करते हुए सीजेआई ने कहा कि प्राथमिक मुद्दा 1991 अधिनियम की धारा 3 और 4 और इसकी रूपरेखा के साथ-साथ उक्त धारा की चौड़ाई और विस्तार से संबंधित है। चूंकि मामला इस न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है, इसलिए हम यह निर्देश देना उचित समझते हैं कि कोई भी नया मुकदमा दर्ज नहीं किया जाएगा या कार्यवाही का आदेश नहीं दिया जाएगा। लंबित मुकदमों में न्यायालय कोई प्रभावी आदेश या अंतिम आदेश पारित नहीं करेंगे। जब कोई मामला हमारे समक्ष लंबित है तो क्या किसी अन्य न्यायालय के लिए इसकी जांच करना उचित और उचित है। हम अधिनियम के अधिकार क्षेत्र में है l

Places of Worship Act: ‘जब तक हम मामले की सुनवाई नहीं कर लेते, तब तक कोई और मुकदमा दर्ज नहीं किया जा सकता’

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब तक वह पूजा स्थल अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई नहीं कर लेता और उनका निपटारा नहीं कर लेता, तब तक देश में कोई और मुकदमा दर्ज नहीं किया जा सकता। हमारे पास राम जन्मभूमि मामला भी है।

Places of Worship Act: सांसद कार्ति चिदंबरम ने उपासना स्थल अधिनियम पर कहा- यह धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने की रक्षा करता है

सुप्रीम कोर्ट में सुनावई से पहले कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम ने पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 का जोरदार बचाव किया। चिदंबरम ने कहा कि यह अधिनियम भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को बनाए रखने में महत्वपूर्ण है और इसमें बदलाव नहीं किया जाना चाहिए। चिदंबरम ने कहा कि पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के प्रावधान देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने की रक्षा करते हैं। अधिनियम में कोई भी बदलाव बहुत ही समस्याग्रस्त है। उन्होंने जोर देकर कहा कि कानून में बदलाव से न केवल सामाजिक सद्भाव बाधित होगा, बल्कि भारत की एकता के लिए व्यापक परिणाम हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि हम कितना पीछे जा सकते हैं, क्योंकि हर देश में शासक आते हैं और अपनी इच्छा थोपते हैं? हम समय में पीछे नहीं जा सकते और हमें एक रेखा खींचनी चाहिए और पूजा स्थल अधिनियम, 1991 द्वारा खींची गई रेखा का पालन करना चाहिए।

Places of Worship Act: उपासना स्थल अधिनियम के खिलाफ याचिकाओं में क्या कहा गया है?

सर्वोच्च न्यायालय अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक याचिका सहित कई याचिकाओं पर सुनवाई की। जिसमें पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की धारा 2, 3 और 4 को रद्द करने की मांग की गई है। याचिकाओं में पूजा स्थल अधिनियम को चुनौती देते हुए कहा गया है कि यह अधिनियम हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों और सिखों के उनके ‘पूजा स्थलों और तीर्थस्थलों’ को बहाल करने के अधिकारों को छीन लेता है, जिन्हें आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया था। उठाए गए प्राथमिक तर्कों में से एक यह है कि ये प्रावधान व्यक्तियों या धार्मिक समूहों को पूजा स्थलों को पुनः प्राप्त करने के लिए न्यायिक उपचार मांगने के अधिकार से वंचित करते हैं। इसके विपरीत, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और महाराष्ट्र के विधायक जितेंद्र सतीश अव्हाड ने अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने का विरोध करते हुए याचिकाएं प्रस्तुत की हैं। उनका तर्क है कि कानून सार्वजनिक व्यवस्था, बंधुत्व, एकता और राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को बनाए रखता है।

Places of worship act hearing no further suits can be registered against places of worship says supreme court
‘सुनवाई तक मंदिर-मस्जिद विवाद पर कोई नया केस, आदेश या सर्वे नहीं’, प्लेसेस ऑफ वर्शिप मामले पर बोला सुप्रीम कोर्ट; केंद्र से मांगा जवाब
Places of Worship Act Supreme Court: सीजेआई ने कहा कि हम एक बात स्पष्ट करना चाहते हैं कि अगली सुनवाई तक कोई नई याचिका दायर नहीं हो सकती। कोर्ट ने सभी पक्षकारों से कहा कि वे अपने तर्क पूरी तरह तैयार रखें ताकि मामले को तेजी से निपटाया जा सके।

Places of Worship Act Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई हुई। सीजेआई ने स्पष्ट रूप से कहा कि इस मामले की अगली सुनवाई तक मंदिर-मस्जिद से जुड़े किसी भी नए मुकदमे को दर्ज नहीं किया जाएगा। देश की सबसे बड़ी अदालत में बुधवार को प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू हुई। इस मामले की सुनवाई सीजेआई जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के वी विश्वनाथन की विशेष बेंच कर रही है। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए। तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि सरकार इस मामले में हलफनामा दाखिल करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक केंद्र का जवाब दाखिल नहीं होता, तब तक मामले की सुनवाई पूरी तरह संभव नहीं है, साथ ही कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि मामले की सुनवाई के दौरान किसी भी तरह के नए मुकदमे दर्ज नहीं किए जा सकते।

प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट (Places of Worship Act), 1991 यह अधिनियम धार्मिक स्थलों की स्थिति को 15 अगस्त 1947 के आधार पर संरक्षित करता है और उसमें बदलाव करने पर रोक लगाता है। हालांकि, इसमें अयोध्या विवाद को बाहर रखा गया था। सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि विवाद से जुड़े फैसले का हवाला देते हुए कहा कि कई मुद्दे उठाए गए हैं, जिनकी विस्तृत जांच की जाएगी।

Places of Worship Act:

सभी पक्ष अपने तर्क तैयार रखेंः सुप्रीम कोर्ट
सीजेआई ने कहा कि हम एक बात स्पष्ट करना चाहते हैं कि अगली सुनवाई तक कोई नई याचिका दायर नहीं हो सकती। कोर्ट ने सभी पक्षकारों से कहा कि वे अपने तर्क पूरी तरह तैयार रखें ताकि मामले को तेजी से निपटाया जा सके। पूजा स्थल अधिनियम, 1991, धार्मिक स्थलों की स्थिति को 15 अगस्त 1947 के आधार पर संरक्षित करता है और इसमें बदलाव करने पर रोक लगाता है। हालांकि, इस कानून में अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को बाहर रखा गया था। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए तारीख तय की है और तब तक स्थिति को यथावत रखने का निर्देश दिया है।

Places of Worship Act: सुनवाई के दौरान क्या रखे गए तर्क सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार की ओर से कहा कि सरकार हलफनामा दाखिल करेगी। सीजेआई ने केंद्र को निर्देश दिया कि वे अपना जवाब दाखिल करें और उसकी प्रति याचिकाकर्ताओं को दें। चीफ जस्टिस ने कहा कि इस मामले की विस्तृत सुनवाई नहीं होगी क्योंकि यह अभी लंबित है। कोर्ट यह भी स्पष्ट किया कि इस मामले से संबंधित कोई नया सूट दाखिल नहीं होगा। सीजेआई ने केंद्र को निर्देश दिया कि वे अपना जवाब दाखिल करें और उसकी प्रति याचिकाकर्ताओं को दें। उन्होंने कहा कि इस मामले की विस्तृत सुनवाई नहीं होगी क्योंकि यह अभी लंबित है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस मामले से संबंधित कोई नया सूट दाखिल नहीं होगा। सीजेआई ने कहा कि कई सवाल उठाए गए हैं, जिन पर अदालत सुनवाई करेगी। याचिकाकर्ता वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन ने कहा कि अलग-अलग अदालतों में कुल 10 सूट दाखिल हुए हैं और इनमें आगे की सुनवाई पर रोक लगाई जानी चाहिए। केंद्र सरकार ने इसका विरोध किया। एसजी तुषार मेहता ने कहा कि कोई भी प्राइवेट पार्टी सूट पर रोक लगाने की मांग कैसे कर सकती है। मुस्लिम पक्ष ने बताया कि देशभर में 10 स्थानों पर 18 सूट दाखिल किए गए हैं। उन्होंने अनुरोध किया कि जब तक प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं आता, सभी मामलों की सुनवाई पर रोक लगाई जाए। सुप्रीम कोर्ट ने उल्लेख किया कि मथुरा का मामला और दो अन्य सूट पहले से ही अदालत के समक्ष लंबित हैं।

Places of Worship Act: सुप्रीम कोर्ट ने नए और लंबित मामलों पर रोक लगाई पूजा स्थल अधिनियम, 1991 में याचिकाओं पर सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि 1991 अधिनियम से संबंधित कोई भी नया मुकदमा या कार्यवाही शुरू नहीं की जानी चाहिए। मौजूदा मामलों में, न्यायालयों को प्रभावी या अंतिम आदेश जारी करने से रोक दिया गया है, जबकि मामला सर्वोच्च न्यायालय के विचाराधीन है। पूजा स्थल अधिनियम की सुनवाई करते हुए सीजेआई ने कहा कि प्राथमिक मुद्दा 1991 अधिनियम की धारा 3 और 4 और इसकी रूपरेखा के साथ-साथ उक्त धारा की चौड़ाई और विस्तार से संबंधित है। चूंकि मामला इस न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है, इसलिए हम यह निर्देश देना उचित समझते हैं कि कोई भी नया मुकदमा दर्ज नहीं किया जाएगा या कार्यवाही का आदेश नहीं दिया जाएगा। लंबित मुकदमों में न्यायालय कोई प्रभावी आदेश या अंतिम आदेश पारित नहीं करेंगे। जब कोई मामला हमारे समक्ष लंबित है तो क्या किसी अन्य न्यायालय के लिए इसकी जांच करना उचित और उचित है। हम अधिनियम के अधिकार क्षेत्र में हैं।

Places of Worship Act: ‘जब तक हम मामले की सुनवाई नहीं कर लेते, तब तक कोई और मुकदमा दर्ज नहीं किया जा सकता’ सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब तक वह पूजा स्थल अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई नहीं कर लेता और उनका निपटारा नहीं कर लेता, तब तक देश में कोई और मुकदमा दर्ज नहीं किया जा सकता। हमारे पास राम जन्मभूमि मामला भी है।

Places of Worship Act: सांसद कार्ति चिदंबरम ने उपासना स्थल अधिनियम पर कहा- यह धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने की रक्षा करता है सुप्रीम कोर्ट में सुनावई से पहले कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम ने पूजा स्थल ( विशेष प्रावधान ) अधिनियम, 1991 का जोरदार बचाव किया। चिदंबरम ने कहा कि यह अधिनियम भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को बनाए रखने में महत्वपूर्ण है और इसमें बदलाव नहीं किया जाना चाहिए। चिदंबरम ने कहा कि पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के प्रावधान देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने की रक्षा करते हैं। अधिनियम में कोई भी बदलाव बहुत ही समस्याग्रस्त है। उन्होंने जोर देकर कहा कि कानून में बदलाव से न केवल सामाजिक सद्भाव बाधित होगा, बल्कि भारत की एकता के लिए व्यापक परिणाम हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि हम कितना पीछे जा सकते हैं, क्योंकि हर देश में शासक आते हैं और अपनी इच्छा थोपते हैं? हम समय में पीछे नहीं जा सकते और हमें एक रेखा खींचनी चाहिए और पूजा स्थल अधिनियम, 1991 द्वारा खींची गई रेखा का पालन करना चाहिए।

Places of Worship Act: उपासना स्थल अधिनियम के खिलाफ याचिकाओं में क्या कहा गया है? सर्वोच्च न्यायालय अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक याचिका सहित कई याचिकाओं पर सुनवाई की। जिसमें पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की धारा 2, 3 और 4 को रद्द करने की मांग की गई है। याचिकाओं में पूजा स्थल अधिनियम को चुनौती देते हुए कहा गया है कि यह अधिनियम हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों और सिखों के उनके ‘पूजा स्थलों और तीर्थस्थलों’ को बहाल करने के अधिकारों को छीन लेता है, जिन्हें आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया था।

उठाए गए प्राथमिक तर्कों में से एक यह है कि ये प्रावधान व्यक्तियों या धार्मिक समूहों को पूजा स्थलों को पुनः प्राप्त करने के लिए न्यायिक उपचार मांगने के अधिकार से वंचित करते हैं। इसके विपरीत, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और महाराष्ट्र के विधायक जितेंद्र सतीश अव्हाड ने अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने का विरोध करते हुए याचिकाएं प्रस्तुत की हैं। उनका तर्क है कि कानून सार्वजनिक व्यवस्था, बंधुत्व, एकता और राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को बनाए रखता है।

Places of Worship Act: 1991 का उपासना स्थल अधिनियम क्या है? 1991 का कानून किसी भी पूजा स्थल के धर्मांतरण पर रोक लगाता है और 15 अगस्त 1947 को जिस तरह से यह धार्मिक स्थल था, उसके धार्मिक चरित्र को बनाए रखने का आदेश देता है, साथ ही संबंधित या आकस्मिक मामलों को संबोधित करता है। इस कानून में एक अपवाद शामिल है। अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद से जुड़ा विवाद।

Places of Worship Act: वकील अश्विनी उपाध्याय ने क्या कहा? उपाध्याय ने कहा कि यह पूजा स्थल अधिनियम है, प्रार्थना स्थल अधिनियम नहीं। मंदिर को पूजा स्थल माना जाता है जबकि मस्जिद प्रार्थना स्थल है। कानून पहचान की नहीं, चरित्र की बात करता है…हम चाहते हैं कि सभी विवादित स्थलों का सर्वेक्षण कराया जाए ताकि उस स्थान का वास्तविक चरित्र पता चल सके…यह हिंदू-मुस्लिम का मामला नहीं है…वेद, भगवद गीता, रामायण में जिन स्थलों का उल्लेख है, उन्हें पुनर्स्थापित किया जाना चाहिए और इसके लिए उनका सर्वेक्षण कराया जाना चाहिए।

Places of Worship Act: 1991 अधिनियम के खिलाफ कौन हैं? दिल्ली स्थित गैर सरकारी संगठन हिंदू श्री फाउंडेशन, जो घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदू भक्तों के हितों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करता है। उन्होंने तर्क दिया कि यह अधिनियम मनमाना है। उन्होंने 15 अगस्त, 1947 की कट-ऑफ तिथि की आलोचना करते हुए कहा कि भारत की राजनीतिक स्वतंत्रता और हिंदू पहचान के औपनिवेशिक उन्मूलन और इस्लामी आक्रमणकारियों द्वारा लगाए गए सांस्कृतिक प्रभुत्व से उपजे सभ्यतागत संघर्षों के समाधान के बीच कोई तर्कसंगत संबंध नहीं है। पूर्व सांसद चिंतामणि मालवीय ने भी अधिनियम को चुनौती देते हुए एक आवेदन दायर किया, जिसमें दावा किया गया कि यह धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन करता है और इसे समाप्त किया जाना चाहिए। उन्होंने तर्क दिया कि यह कानून असंवैधानिक है और हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों और सिखों के अपने धर्म का पालन करने और प्रचार करने के अधिकारों का उल्लंघन करता है। मालवीय के अनुसार, यह अधिनियम इन समुदायों को उन धार्मिक संपत्तियों को पुनः प्राप्त करने के अधिकार से वंचित करता है जिन्हें अन्य समुदायों द्वारा गलत तरीके से हड़पा गया था और न्यायिक उपचार के उनके अधिकार को समाप्त करता है। उन्होंने आगे तर्क दिया कि केंद्र ने न्यायिक समीक्षा को रोककर अपने विधायी अधिकार का अतिक्रमण किया है, जो कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विभिन्न निर्णयों में बरकरार रखी गई एक मौलिक विशेषता है।

Places of Worship Act: पूर्व CIC से लेकर पूर्व CEC तक, जिन्होंने 1991 अधिनियम की रक्षा के लिए SC का दरवाजा खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाले प्रमुख व्यक्तियों में, चाहे व्यक्तिगत रूप से हो या समूह में, पंजाब के पूर्व डीजीपी जूलियो रिबेरो, पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह, दिल्ली के पूर्व एलजी नजीब जंग, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी, लेफ्टिनेंट जनरल ज़मीरुद्दीन शाह (सेवानिवृत्त), पूर्व गृह सचिव गोपाल कृष्ण पिल्लई, इतिहासकार रोमिला थापर और मृदुला मुखर्जी, और सांसद मनोज झा (आरजेडी) और थोल थिरुमावलवन (वीसीके) शामिल थे। उनका आम तर्क यह था कि 1991 का अधिनियम भारत के सामाजिक ताने-बाने की रक्षा और सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए आवश्यक था, और सुलझाए गए धार्मिक विवादों को फिर से खोलने से राष्ट्र को ही नुकसान होगा।

Places of Worship Act: अधिनियम के पक्ष में क्या हैं तर्क मुगल आक्रमणों के दौरान कई धार्मिक संरचनाओं को मस्जिदों में परिवर्तित करने के तर्कों के जवाब में, कुछ आवेदकों ने कहा कि भले ही मस्जिदें ध्वस्त हिंदू मंदिरों पर बनाई गई हों, लेकिन ऐसे दावे अंतहीन हो सकते हैं। उन्होंने तर्क दिया कि हिंदू मंदिरों का निर्माण अक्सर बौद्ध स्तूपों के खंडहरों पर किया जाता था, और बौद्ध लोग फिर उन स्थलों को स्तूप के रूप में बहाल करने की मांग कर सकते हैं। आवेदकों ने इस बात पर जोर दिया कि पूजा स्थल अधिनियम ऐसे विवादों को समाप्त करने और शांति और सांप्रदायिक सद्भाव को बनाए रखने के लिए पेश किया गया था। कई प्रमुख व्यक्तियों ने 1991 के अधिनियम के खिलाफ याचिकाएं दायर की हैं। जिनमें काशी राजघराने से महाराजा कुमारी कृष्ण प्रिया, भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी, पूर्व सांसद चिंतामणि मालवीय, सेवानिवृत्त सेना अधिकारी अनिल काबोत्रा, अधिवक्ता चंद्रशेखर, वाराणसी निवासी रुद्र विक्रम सिंह, धार्मिक नेता स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, उनका तर्क है कि यह कानून उनके धार्मिक प्रतिष्ठानों और तीर्थ स्थलों की देखरेख और रखरखाव के उनके अधिकार में बाधा डालता है।

places-of-worship-act-576165 (1)

 

Leave A Reply

Your email address will not be published.