जौनपुर। अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ (इस्कॉन) जौनपुर द्वारा सिद्धार्थ उपवन में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के तृतीय दिवस पर भक्तों का उत्साह और भी बढ़ता दिखाई दिया। कथा व्यास कमल लोचन प्रभु जी (अध्यक्ष, इस्कॉन मीरा रोड—मुंबई एवं वापी—गुजरात) ने अपने मधुर प्रवचनों से भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं और भक्तियोग के गूढ़ रहस्यों को सरलता से समझाया।
कथा व्यास कमल लोचन प्रभु ने कहा कि बद्धजीव अनादि काल से अपने पाप कर्मों के संचित परिणामों की गंदगी से ढका रहता है। अपने पिछले पापों के परिणामों के कारण, वह पाप कर्मों में और अधिक लिप्त हो जाता है तथा परम भगवान श्री कृष्ण के अभिन्न अंग के रूप में अपनी स्वाभाविक स्थिति को अधिकाधिक भूल जाता है। अपने आध्यात्मिक स्वरूप को भूल जाने के कारण, वह स्वयं को अस्थायी भौतिक शरीर तथा उसकी सामग्री के साथ पहचान लेता है।
इस प्रकार, प्रेमपूर्वक कृष्ण की सेवा करने के बजाय, वह भगवान की सीमित सांसारिक शक्ति, माया की सेवा करने के लिए बाध्य होता है। जीव कभी भी अस्तित्व की किसी भी अवस्था में, चाहे वह बद्ध हो या मुक्त, स्वतंत्र नहीं होता, लेकिन जब वह माया के वश में होता है, तो वह कष्ट भोगता है, और जब वह कृष्ण के वश में होता है, तो वह भगवान तथा उनके भक्तों की संगति में जीवन का आनंद लेता है। उन्होंने आगे कहा कि श्री कृष्ण संकीर्तन, या भगवान के पवित्र नामों का सामूहिक कीर्तन, हृदय में लाखों वर्षों से जमा हुए सभी मैल को तुरंत साफ करने में सक्षम है। यह पवित्र नाम के मंद प्रतिबिंब का ही परिणाम है। रात के समय चोरों, भूतों, हत्यारों आदि का भय रहता है। सुबह में, सूरज के क्षितिज पर उगने से पहले ही, यह अपनी पहली किरणों से ऐसे सभी भय को दूर कर देता है।
इसी तरह, पवित्र नाम अपने पूर्ण रूप से प्रकट होने से पहले, यह भौतिक अज्ञानता के अंधकार को दूर कर देता है और उन पापपूर्ण गतिविधियों के ढेर को साफ कर देता है जो अभी तक प्रकट नहीं हुई हैं। इस प्रकार व्यक्ति कर्म प्रतिक्रिया से मुक्त हो जाता है और जीवन के मुक्त स्तर पर पहुंच जाता है। इस तरह, भक्ति सेवा का द्वार खुल जाता है। कथा के तृतीय दिवस की शुरुआत भव्य संकीर्तन यात्रा से हुई। हरि नाम संकीर्तन करते हुए भक्तों ने नगर की सड़कों पर भक्ति का संदेश फैलाया। यात्रा में छोटे बच्चों से लेकर वृद्धों तक सभी ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। संकीर्तन के दौरान भक्तों ने “जय श्रीकृष्ण” और “हरि बोल” के जयकारों से पूरे नगर को भक्तिमय कर दिया।