दिल्ली के चुनावी दंगल की तिथियाँ घोषित होते ही राजनीति के गलियारे में चुनावी वादों की घोषणायें मैदान में उतरने वाली हर पार्टियाँ, जनता के लिए अपने बंद पड़े पिटारों को खोलने लगी है. जो आजतक चाहते हुए भी जनता को नही दे सके थे, मगर अब देने के लिए तैयार हो गये है. सत्ता पक्ष या विपक्ष कोई भी कुर्सी पाने के उद्देश्य से ही जनता को लुभाने के लिए, कुछ भी करने के लिए चुनावी वादे कर रहे हैं. जब पैसे की बात आती है तो उस समय पैसे पाने की लालच में जनता भी करवट बदलने लगती है. पार्टियों की रेवड़ियाँ पाने के लिए जनता व्याकुल होकर जहाँ पर अघिक लाभ होने की उम्मीद होती है उधर ही ओ भी झुकने लगती है. जनता के लिए काम करने वाले जनसेवक एकबार चुनाव जीतने के बाद पूरे जीवन भर पेंशन पाने के हकदार बन जाते है. केवल पांच वर्ष के लिए जनता की सेवा करके वह हर तरह की मिलने वाली सरकारी सुभिदायों का लाभ जनता से पहले नेताजी को मिलने लगती है. वहीं देश की सेवा करने वाले सरकारी कर्मचारी 35 से 40 वर्ष सेवा करने के बाद जिन्हें मिलने वाली तुच्छ पेंशन नेताओं के हृदय में खटकती रहती है.
इसलिए कोई भी नेता कुर्सी पाने के लिए जनता के लिए जनसेवक बनना आज अधिक पसंद करता है. क्योंकि अब सरकारी नौकरियाँ आसानी से मिलती नही है. आज देश में बेरोजगारी, मंहगाई, और भ्रष्टाचार चरमसीमा पर है. हर जगह जनता त्रस्त है. शहर हो या ग्रामीण हर क्षेत्रों में लोग दुखी ही हैं. हरएक के जीवनशैली पर आज मंहगाई और बेरोजगारी का असर वाखूबी पड़ा है. आजकल कोई भी मौसम हो प्रदूषण चारों तरफ ही पंख फैलाये सभी के सिर पर मंड़रा रहा होता है. नेता लोग मंहगाई और बेरोजगारी पर कभी बात नही करेंगे और नही करते हैं. वे लोग केवल रेवड़ियाँ बांटने की होड़ में लगे हुए रहते है. हर क्षेत्र के चुनाव में मतदाताओं को रिझाने के लिए केवल अपने अपने दांव पेंच जनता के समक्ष पेश करते रहते है. बड़े कद का नेता हो या छोटे कद का नेता हो दोनों ही प्रकार के नेता जो मैदान में मदताओं से वोट मांगने के लिए जनसभायें करते हैं वे सभी अपने प्रतिद्वंदी को हर हाल बदनाम करने में कोई कसर नही छोड़ते हैं.
वे जनता के लिए क्या करेंगे ये सब मुद्दे छोड़कर केवल अपनी प्रतिद्वंदी की बुराई करने में ही अपनी स़भायें समाप्त कर देते हैं. विपक्ष में खड़े नेता के सात पुस्तों तक की खामियाँ जनता के सामने परोसने में कोई भूल नही करते हैं. जनता तालियाँ बजाने और नेताजी की जयकार करने में मशगूल होजाती है. जनसभा में गई जनता गदगद होकर घर जब लौटती है तब उसे पता चलता है कि वे कितनी बड़ी भूल कर बैठे हैं. इसतरह चुनावी घोषणा के बाद ही राजनीति गरमा गई और बयान बाजियाँ बढ़चढ़ कर होने लगी है. चुनावी दंगल में किस किस का मंगल होगा और कुर्सी की खेल में किसकी कुर्सी जायेगी किसको मिलेगी अबतो आठ फरवरी 2025 को पता चलेगा.