ध्वजारोहण और झंडोत्तोलन में अंतर बहुत ही रोचक है भारतीय झंडे का इतिहास -राजकुमार अश्क

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राष्ट्र ध्वज किसी भी देश की आन बान शान का प्रतीक माना जाता हैं, उसका सम्मान करना उस देश के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होता हैं। हमारा राष्ट्रीय ध्वज भी हमारे देश की आन, बान, शान और गौरव का प्रतीक है। हम प्रत्येक वर्ष साल में दो बार अपने राष्ट्रीय ध्वज को बडे़ ही शान से अपने भवनों, प्रतिष्ठानों पर फहराते है, मगर इन दोनों दिवसों में राष्ट्रीय ध्वज को फहराने का तरीका अलग अलग होता है। इस लेख के माध्यम से हम यह स्पष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं कि आखिर वह अंतर है क्या? जैसा कि हम सभी जानते हैं 15 अगस्त सन् 1947 को हमारा देश अंग्रेज़ों की दासता से मुक्त हुआ था। उस समय हमारे लाल किले पर अंग्रेजों का झंडा लगा था। उस झंडे को सम्मान पूर्वक डोरी से नीचे उतार कर दूसरी डोरी से अपने तिरंगे को ऊपर खींच कर फहराया गया। इस प्रक्रिया को ध्वजारोहण कहते हैं। (Flag Hoisting) आजादी के ठीक 2 वर्ष 11 महीने और 18 दिन बाद 26 जनवरी सन् 1950 को हमारे देश का संविधान लागू हुआ। चूंकि उस समय हमारा देश पूरी तरह आजा़द हो चुका था और हमारा तिरंगा लाल किले पर पहले से ही बधा था सिर्फ उसे फहराना था इस प्रक्रिया को झंडा फहराना या झंडोत्तोलन (Flag Unfurling) कहते हैं।
यही दो मुख्य अंतर है ध्वजारोहण और झंडोत्तोलन में
*गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर कुछ अन्य रोचक जानकारी* दिल्ली के लालकिले पर 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस पर देश के प्रधानमंत्री फ्लैग हास्टिंग करते हैं और परेड की सलामी लेते हैं जबकि 26 जनवरी को राष्ट्रपति झंडे को फहराते है इसके पीछे का कारण ये है कि 15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ, तो उस पल को यादगार बनाने और उस क्षण के सम्मान के लिए ध्वजारोहण किया गया। क्योंकि उस समय भारत का संविधान लागू नहीं हुआ था हम सिर्फ आज़ाद हुए थे। राष्ट्रपति जो किसी भी राष्ट्र का संवैधानिक प्रमुख होतें हैं, उन्होंने अपना पदभार ग्रहण नहीं किया था। हालांकि, इस दिन के पूर्व संध्या को राष्ट्रपति राष्ट्र के नाम अपना संदेश देते हैं। 26 जनवरी, गणतंत्र दिवस को संविधान लागू होने के उपलक्ष्य में उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन राष्ट्रपति ही फ्लैग अनफर्लिंग करते हैं। यहां हम यह भी स्पष्ट कर दे कि स्वतंत्रता दिवस के दिन दिल्ली के लाल किले पर प्रधानमंत्री ध्वजारोहण करते हैं , जबकि गणतंत्र दिवस के दिन राजपथ पर झंडा फहराया जाता है। गणतंत्र दिवस के अवसर पर देशभर में धूमधाम से कार्यक्रम आयोजित होते हैं लेकिन गणतंत्र दिवस के मुकाबले स्वतंत्रता दिवस पर ऐसा नहीं होता है।
राष्ट्रीय झंडे का इतिहास
तिरंगे की डिजाइन पिंगली वेकैंया द्वारा बनाई गई थी जो कि एक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे।
साल 1906 में पहली बार कोलकाता के पारसी बागान स्क्वायर में तिरंगा फहराया गया था। तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने से पहले कई झंडे का प्रयोग किया गया था।
1931 में तिरंगे में अशोक चक्र को शामिल करने की मंजूरी मिली थी उसके पहले तिरंगे में चरखा होता था। 15 अगस्त सन् 1947 को पहली बार सार्वजनिक रूप से लाल किले पर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने तिरंगे को फहराया था। 22 दिसम्बर 2002 से आम नागरिक को भी अपने घरों पर तिरंगा फहराने की अनुमति मिली।

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