आधुनिक समाज में एक दूसरे से आगे बढ़ जाने और निकल जाने की होड़:- विक्रम दयाल

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मुंबई :आज समाज में एक दूसरे से आगे बढ़ जाने की होड़ लगी हुई है.छोटी बड़ी जिज्ञासायें पूर्ण होने के बाद और अधिक पाने की इच्छायें निरंतर मनुष्य के हृदय में जागृति होती रहती है. इंसान की ब़ड़ती इच्छाओं पर विराम लगने का नाम नही रहता.खुद आप अपने घर के अंदर ही पहले देखिये तब आपको पता चलेगा कि कल आपका जीवन कैसा था और अब आपका जीवन कैसे चल रहा है. कहने का मतलब यह है कि आपको संतोष नही हो रहा है. आपके हृदय में हमेशा असंतोष ही है. बढ़ती इच्छायें हृदय की, या आपके मनकी कम नही हो रही है. और कुछ अधिक पाने की लालसा बढ़ती ही जा रही है. एक पड़ोसी दूसरे पड़ोसी से आगे निकलने की कोशिष करते रहता है. इसी तरह एक गांव दूसरे गांव से आगे निकलने की कोशिषे करते रहता है. एक धनी दूसरे धनी से आगे निकल जाने की युक्ति करते रहता है. एक शहर दूसरे शहर से आगे बढ़ने की पुरजोर केशिषें करते रहता हैं.

जबसे इंसान इस धरती पर आया है तभी से एक दूसरे से आगे निकल जाने की होड़ में अपना जीवन समाप्त करते जारहा है. मगर इच्छायें हैं कि वह कम होने का नाम ही नही लेती हैं.
धीरे धीरे उनके कदम राजनीति की तरफ या समाज सेवा की तरफ बढ़ने लगते है, और बड़े बनने की अभिलाषा उन्हें नेता बनने के लिए जब मजबूर करती है तब वे राजनीति के अंदर प्रवेश कर जाते हैं. समाजसेवी लोग जोड़ तोड़ की कला, डराने धमकाने की कला, प्रलोभन दिखलाने की कला, बड़े बड़े वादे करके निभाने की कला, स्वप्न दिखलाने की कला में, माहिर होकर जनता के दिलको लुभाने की कला से अपने लच्छेदार भाषणों से जनमानस को अपने वश में कर लेते हैं. जनता के बीच पहुृचकर जनता की तकलीफें जानते जानते उन्हे हल करने के लिए कुर्सी पर बैठे हुए नेताओं के कदम तक पहुृँच जाते हैं. जनता की कठिनाइयों का निवारण करते हुए वह एकदिन अपना कदम सच्ची राजनीति में रखकर कुर्सी हासिल कर ही लेते हैं. तब वह एक देशभक्त के रूप में उभर कर जनसेवक कहलाने लगते है. नेता बनने के लिए जितने दांव पेच की जरूरते पड़ती है तब वह सारे दांव पेच सीख कर बड़े से बड़े नेताओं की टोली में सामिल हो जाते है.
गांव से चलकर प्रधान, फिर सरपंच, ग्राम सेवक, नगरसेवक, सांसद, एमएलए, सहमंत्री, मंत्री, बनकर विधान सभा और लोकसभा तक पहुँचने वाला नेता जनता की रग रग को पहचान जाता है. जब वह जनता के बीच जाता है, लोग उसके नाम की जय जयकार करते हैं. सम्मान करते हैं. जनता के द्वारा चुने हुए नेता जनता के ही सीने पर बैठकर राज करते हैं और वे उस जनता के लिए किये हुए वादे भूल कर जनता को ही तबाह करते हैं. जनता की आवाज को सुनने वाला नेता जनता की आवाज को दबा देता है. मगर जब उनके काम करता है तो उनके सारे बिगड़े काम को एक झटके में ही बना भी देता है. बड़ा बनने का शौक, बड़ा बनने का अभिमान, आज सभी में है!

कोई भी इंसान मिला हुआ मौका गंवाना नही चाहता है. छोटी बड़ी चाहत के भूखे लोग बड़े बनने के स्वप्न को अगर मौका मिला तो देख ही लेते हैं. आजके युग में सभी लोगों को बड़ा बनना पसंद है. कोई छोटा रहना पसंद नही करता. हर एक क्षेत्र में होड़ मची हुई हुई है. शिक्षा, व्यापार, राजनीति, नौकरी, पेशा, व्यवसाय, कल कारखाने, उद्योगधंधे, धरती, आकाश, महासागर, जहाँ कहीं इंसान की नजर पहुँचती हैं हर जगह आगे निकलने की होड़ लगी है. किसी को खुदकी कार्य- कुशलता पर भरोसा नही है, उससे और आगे बढ़ने की ललक बनी हुई है. यही आजके आधुनिक युग की तस्वीर है. इंसान आगे बढ़ने की चाहत में एक मशीन की तरह निरंतर काम करते हुए आगे निकलते जा रहा है, और तनिक विश्राम करना भूल गया है. बीबी बच्चों और परिवार से भी अलग थलग रहकर बड़ा बनने के लक्ष्य को हासिल करने में व्यस्त होगया है.

 

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