मुम्बई : कड़वी से कड़वी बातों से, एक दूसरे पर जड़ रहे ठूसे. एक दूसरे की राजनीतिक कमियों को निकाल कर, बरसा रहे लात घूसे. रोज रोज नेताओं की जन सभाओं में शब्दों के वाणों की चल रही बौछारें. पक्ष और विपक्ष के तरकस से निकलते वाण ढ़ाल को भी चीरतेे हुए सीने में उतर रहे हैं. कहीं कहीं पर शब्दों का ही मल्ल युद्ध हो रहा है. जनता दोनों पक्षों के नेताओं के चुनावी पैंतरों के खेल देख रही है. मीडिया भी तमाशे देखने में, और बखान करने में, पीछे नही है. बल्कि और भी आगे है. मतदाता के मतों से कौन उठेगा, कौन गिरेगा, और कौन जीतेगा. यह तो आने वाला वक्त ही तय करेगा. इस समय चुनाव की तिथियों की घोषणा कई राज्यों में हो गई है. और कई राज्यों में और भी होना बाकी है. जहाँ जहाँ चुनावी तिथियाँ नजदीक हैं वहाँ वहाँ पर नेताओं की लम्बी लम्बी नई नई धोषणाओ की लिस्ट जारी हो गई है. सबलोग जनता के बीच जाकर मदताताओं को रिझाने के लिए अपने अपने पक्के वादे कर रहै हैं. और जनता को आकर्षित करने की भरपूर कोशिष भी कर रहे हैं. जनता के दिलों को टटोलने की बातें, जनता के हित की बातें को छोड़ कर नेता लोग कहीं और ही किसी दूसरे हित की बात करने लगें हैं.
मुख्य मुद्दा, बेरोजगारी और मंहगाई छोड़ देते हैं. आजकल गांवों से युवा पीढ़ीयाँ रोजगार के लिए, नौकरी धंधे के लिए बाहर पलायन करने लगे हैं. राजनीति अब विषैली हो गई है. युवा लोग राजनीति से कतराने लगे हैं. राजनीति का चुनावी संघर्ष जारी है. अनेकों प्रकार की घोषणायें, अनेकों प्रकार के वादे, नेता लोग जन सभाओं के बीच से ताल ठोंक ठोंक अपने किये गये वादों को पूरा करने की कसमें खाते देखे जारहें हैं. मगर केवल भाषण देना ही नेता लोगों का काम है. पूरा करने का वादा उनका कभी लौटकर नही आता है. दूर दराज के गांव, दूर दराज के क्षेत्र , दूर दराज के इलाके अभी और हैं जहाँ पर नेताओं की नजर केवल वोट लेने के ही समय गई है अन्यथा उनकी नजर भूल से भी उस क्षेत्रकी तरफ नही गई है. जिन्हे आजभी मूलभूत सुविधाओं की जरूरत है. चुनावी दंगल जारी है.
जनता की लाचारी है. नेताओं के भाषणों को सुनने के लिए भूखे प्यासे लोग नेता महोदय की जयकार करने में लगे हुए हैं. एक दूसरे को धूल चटाने वाले नेता, एक दूसरे को आसमान दिखाने वाले नेता, एक दूसरे को जादुई खेल दिखाने वाले नेता, एक दूसरे को औकात दिखाने वाले नेता, एक दूसरे को आघात पहुँचाने वाले नेता, एक दूसरे का हृदय पिघलाने वाले नेता, एक दूसरे के बहते आसुँओं को पोछने वाले नेता, एक दूसरे के लिए कुछ कर गुजरने वाले नेता, एक दूसरे के काम को सही दिशा दिखाने वाले नेता, एक दूसरे की थाली को मिल बांट कर खाने वाले नेता, किसी भूखे प्यासे की भूख मिटाने वाले नेता जब जब देश में चुनावी दंगल होते हैं तब तब जनता के बीच दिखाई पड़ ही जाते हैं. हिंदू मुसलमान और धार्मिक मुद्दे तो पहले से ही उठते चले आरहे हैं. अब देखना है इस चुनावी दंगल में जनता का मंगल कलश क्या कहता है.?