राजस्व न्यायालय के अन्तरिम आदेश की निगरानी पोषणीय नही- हाई कोर्ट का आदेश जानिए क्या है की दलील

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी प्रकरण में राजस्व न्यायालय के अंतरिम आदेश के खिलाफ कमिश्नर की अदालत में निगरानी याचिका पोषणीय नहीं है। कमिश्नर को राजस्व न्यायालय के अंतिम रूप से निर्णय वादों के खिलाफ ही निगरानी याचिका की सुनवाई का क्षेत्राधिकार है।
यह फैसला न्यायमूर्ति डॉ.योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव की अदालत ने मोहम्मद मुस्लिम और पांच अन्य की ओर से प्रयागराज के बेली कछार की भूमि विवाद को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। याची के अधिवक्ता विभु राय ने दलील दी कि याची बेली कछार स्थित एक भूखंड का स्वामी है, राजस्व अभिलेखों में उसका नाम दर्ज है। इस जमीन को लेकर उसका विपक्षी मो.सलीम से सिविल वाद चल रहा है। सिविल वाद अदालत में लंबित है।
अंतरिम निषेधाज्ञा की अर्जी खारिज हो चुकी है। विपक्षी ने इस तथ्य को छिपाकर एसडीएम की अदालत में उद्घोषणा वाद दाखिल किया। साथ ही निषेधाज्ञा की अर्जी भी दाखिल कर दी। एसडीएम ने 17 अक्तूबर 2022 को यथा स्थिति का एक पक्षीय आदेश पारित कर दिया। लेकिन, जब याची ने अपनी विस्तृत आपत्ति दाखिल की तो एसडीएम ने उक्त आदेश को वापस ले लिया।

विपक्षी ने एसडीएम के आदेश के खिलाफ कमिश्नर के यहां निगरानी दाखिल की। कमिश्नर ने इसे स्वीकार कर लिया। कोर्ट ने कहा कि राजस्व न्यायालय के विरुद्ध निगरानी दो ही स्थितियों में सुनी जा सकती है। पहले यह की प्रकरण ऐसे सूट या कार्रवाई से संबंधित हो, जिसे राजस्व न्यायालय की ओर से निर्णीत किया जा चुका हो।

दूसरा यह कि निर्णय ऐसे सूट या कार्रवाई से संबंधित होना चाहिए, जिसके खिलाफ अपील का प्रावधान न हो।

निगरानी अदालत का क्षेत्राधिकार इन दो शर्तों पर निर्भर करेगा। कोर्ट ने कहा कि एसडीएम ने निषेधाज्ञा अर्जी निस्तारित नहीं की थी, वह अभी उनके न्यायालय में लंबित है। इस स्थिति में यह मामला निर्णीत वाद की श्रेणी में नहीं आएगा। इसलिए इस अंतरिम आदेश के खिलाफ निगरानी याचिका पोषणीय नहीं
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