मुम्बई :बारिस का कहर थमने के बाद शरद ऋतु के आगमन के साथ ही दूषित और धूंवादार हवाओं का प्रकोप जनता को सताने लगता है. दीपावली त्यौहार के अवसर पर पटाखे जलाने का काम लोग अधिक से अधिक करते ही हैं. जहाँ पर ठंड ज्यादा पड़ती है, ठंड के मौसम की मार से लोग बचने के लिए जगह जगह पर लकड़ियाँ जलाकर हाथ पैर सेकने का काम भी करने लगते हैं.
साथ ही किसान लोग खेतों मे पड़े बेकार के पुवाल या पराली जलाने का काम आरंभ कर देते हैं. आनेवाली रवी की फसल के लिए. किसानों को खेतों में सूखी पड़ी बिना कामकी पराली या पुवाल जलाने का काम शुरु हो गया है. क्यों कि खरीफ की फसल काअनाज निकाल लेने के बाद अनाजों के बेकार पड़े डंठल को घर में नही रख सकते हैं उसे तो खेतों से दूसरी फसल लगाने के पहले नष्ट करना ही होता है. पहले के समय में जब खेतियाँ बैलों के द्वारा की जाती थी, पराली या पुवालों की जरूरत जानवरों को खिलाने के लिए पड़ती थी. मगर जबसे किसानों ने खेती के लिए मशीनों का उपयोग करना शुरू किया है, तभी से पराली या पुवालों की खपत या उपयोगिता खत्म हो गई है.
पहले के किसान खेती के सारे काम बैलों के द्वारा ही करते थे, इसलिए बैलों की जरूरत हर सभी किसानों को पड़ती थी. और तब पशुओं के चारे की कीमत थी, लोग पशुओ के चारे के लिए परालियों या पुवालों को खरीद कर पशुओं के लिए ले जाया करते थे. लेकिन अब कोई भी किसान चाहे वह अमीर हो या गरीब, सारे के सारे किसानी अब मशीनों से ही करने लगे हैं. इसलिए बैलों की उपयोगिता कृषकों के लिए नही है. देश के अब सभी किसान पशुओं का पालन करना ही बंद कर दिये हैं. 60-70 के दशक में देश में पशुओं की उपयोगिता बढ़ चढ़ कर थी. हर किसान के पास बैल, गाय, भैंस और अन्य दू़ध देने वाले पशुओं का पालन होता था. लगभग हर किसानों के घरों में दू़ध का दर्शन हो जाया करता था. मगर आज के समय में अब हर किसान पैकेट के दूध पर आश्रित होगया है. किसी को अब शुद्ध दूध पीने के लिए नही मिलता है. क्योंकि अब पशुपालन लगभग ग्रामीण क्षेत्रों से खत्म हो गया है. बिना मेहनत के लोग किसानी कर रहें हैं.
किसानों को अन्न पैदा करने के लिए किसानी तो करना ही पड़ेगा.क्योंकि अगर किसान खेती नही करेगा तो वह अपने परिवार का भरण-पोषण कैसे करेगा? और देश को भी अनाज नही दे पायेगा? किसान का जीवन केवल खेती पर ही निर्भर है. और जो लोग खेती नही करते हैं उनको भी वह अनाज नही दे पायेगा? इस लिए किसान खेती करना बंद नही करेगा.
यह सिलसिला पहले से अबतक सालोंसाल चलता ही रहेगा. सरकार को ही सोचना होगा कि अनाज निकालने के बाद उसके डंठलों को किस तरह नष्ट करना चाहिए. कभी न रुकने वाला मौसम अपने समय पर आता जाता ही रहेंगा. किसानों का काम खेती करना है वह भी अपना काम करते ही रहेंगे. पराली या पुवाल हर साल निकलते ही रहेंगे. समय रहते सरकार को ही कोई ठोस कदम अब उठाने की जरूरत है!