अलाव व्यवस्था की बात की जाये तो सिर्फ काग़ज़ों की शोभा बढ़ाने में सम्बंधित कर्मचारी मस्त

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जौनपुर। सर्द मौसम ने ऐसा तेवर दिखाया कि बच्चे ,बुढ़े नौजवान राहगीर सभी ठंड से बेहाल है। लेकिन अभी तक नगर पालिका परिषद के द्वारा अलाव की पर्याप्त व्यवस्था नहीं की गई है।अगर अलाव व्यवस्था की बात की जाये तो सिर्फ काग़ज़ों की शोभा बढ़ाने में सम्बंधित कर्मचारी मस्त है। इसी लिए जनता आज दिनेश टंडन को याद कर रही है कि अगर दिनेश टंडन होते तो यह दिन न देखना पड़ता। विभिन्न चौराहों पर जनता आपस में चंदा एकत्रित कर ठंड से बचाव के लिये अलाव जला रही है। प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो लकड़ी के ठेकदार बने लोग आपस में ही लकड़ी का बंटवारा करने में उलझे हुए है।अलाव प्रभारी बने दीपक शाह ने बताया कि चिन्हित जगहो पर रोज 40 किलो लकड़ी गिराई जा रही है।अगर प्रभारी की बात को कुछ देर के लिए सच मान भी लिया जाए तो क्या जनता झूठ बोल रही है कि 15 से 20 किलो ही लकड़ी गिरती है वह भी कई पूर्व के चिन्हित स्थानों को छोड़कर।

कहीं-कहीं तो कई दिनों से लकड़ी गिराही नहीं गई है।नगर पालिका परिषद से जिनको ठेका मिला है लकड़ी गिराने का अरविंद कुमार मौर्य ने बताया कि आज हमारी लकड़ी के वाहन को आरटीओ साहब पकड़ लिए परमिट नहीं था। यही बात नगर पालिका अध्यक्ष के प्रतिनिधि डॉक्टर रामसूरत मौर्या ने भी कहीं, जबकि इन दोनों के उलट लकड़ी गिराए जाने वाले ठेकेदारों में से एक सुनील यादव ने कहा कि लकड़ी कहीं नहीं गिर रही है सिर्फ कागजों पर लकड़ी को कुछ कतिपय लोगों के घरों में या घरों के पास गिरा दिया जा रहा है अब आखिर किसको सच्चा माना जाए। जो भी हो अलाव के अभाव में लोग भीषण पढ़ रही ठंड में कप कपाते हुए दिनेश टंडन को याद कर रहे है कि आज वह होते तो पर्याप्त मात्रा में लकड़ियां शहर मे सभी चिन्हित किए गए स्थानों पर अलाव के रूप में जली रहती और जनता को शरीर सेक कर राहत महसूस होती।

नगर पालिका परिषद कर्मचारी दीपक शाह जिनको अलाव प्रभारी बनाया गया है उन्होंने बताया कि शहर को दो जोन में बांटा गया है उत्तरी और दक्षिणी उत्तरी जोन में 95 जगहों पर अलाव के लिए चिन्हित किए गए हैं जबकि दक्षिणी जोन में 90 जगहों को चिन्हित किया गया है, जहां पर रोज 40 किलो लकड़ी गिराई जा रही है। लेकिन जब स्थानीय लोगों से जानकारी की जा रही है तो सारी बातें हवा हवाई साबित हो रही है। हां कुछ स्थानों पर लकड़ी गिर तो रही है लेकिन मानक के अनुरूप नहीं,जो लकड़ी गिराई भी जा रही है वह मात्र 15 से 20 किलो ही होती है वह भी सूखी नहीं रहती जिसको जलने में भी काफी समय लगता है। जिससे आक्रोशित होकर जनता सिर्फ और सिर्फ अलाव ही नहीं दिनेश टंडन के कार्यकाल की एक दूसरे से चर्चा करते हुए उनके व्यवहार की भी सराहना करते नहीं थक रही है।

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