अभी इसी अदालत में धनंजय सिंह से सम्बन्धित दो अपराधिक मामले और भी विचाराधीन है उसमे भी तेजी से सुनवाई हो रही है उन मुकदमो में भी गवाह पक्ष द्रोही हो चुके है लेकिन न्यायाधीश ने फिर से गवाहों को तलब कर लिया है। ऐसे में यह तय है कि न्याय पालिका अब धनंजय सिंह के राजनैतिक जीवन का सफर आगे नहीं बढ़ने देगी।
जौनपुर। जरायम की दुनियां में प्रवेश के बाद 2002 में जीवन का राजनैतिक सफर शुरू करने वाले बाहुबली नेता एवं पूर्व सांसद धनंजय सिंह के राजनैतिक सफर का अन्त एक ऐसे मामले के साथ हो गया जिसकी उनको कभी कल्पना भी नहीं की होगी। जी हां नमामि गंगे प्रोजेक्ट मैनेजर अभिनव सिंघल के मामले में 06 मार्च 24 को अपर सत्र न्यायाधीश चतुर्थ एवं एमपी-एमएलए कोर्ट शरद चन्द त्रिपाठी की अदालत से मिली धनंजय सिंह के अपराधिक जीवन काल की पहली सजा ने उनके राजनैतिक सफर को विराम लगा दिया है। हलांकि 2002 से शुरू हो कर 2009 तक धनंजय सिंह को माननीय बनने के सफर पर 2011 में उसी समय विराम लगा दिया था जब उनका बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती से विवाद हो गया था।
यहां बता दे कि नामामि गंगे प्रोजेक्ट के मैनेजर अभिनव सिंघल के द्वारा 10 मई 2020 को अपने अपहरण और रंगदारी टैक्स मांगने के आरोप का मुकदमा अपसं 142/20 से धारा 364, 386, 504, 506, और 120 बी के तहत पंजीकृत कराया था। इस मुकदमें में चार्जशीट न्यायालय भेजे जाने के साथ ही धनंजय सिंह जेल से छूटने के बाद लगातार प्रयास रत रहे कि सभी गवाह होस्टाइल हो जाये और मुकदमा वादी भी मुकदमा वापस लेले और सफल भी रहे मुकदमा वादी और सभी गवाहो को होस्टाइल भी करा लिए थे इसी के साथ मुतमईन हो गए थे कि केश में अब कुछ नहीं होगा यहां से भी दोषमुक्त होकर 2024 के लोकसभा का चुनाव लड़कर फिर माननीय बनने का सपना साकार कर लेगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ और न्यायाधीश ने ऐसा गेम पलटा कि धनंजय सिंह के राजनैतिक सफर पर ही बुरी तरह से विराम लगा दिया है।
मुअसं 142/20 से पंजीकृत धारा 364 ,386 504, 506,120 बी का सत्र परिक्षण 109/20 से करते हुए न्यायधीश ने अपने 50 पेज के फैसले में धनंजय सिंह को लेकर तमाम विन्दुओं पर टिप्पणी करते हुए सजा मुकर्रर किया है। अपर सत्र न्यायाधीश ने अपने फैसले के के पेज नम्बर 06 और 07 पर धनंजय सिंह के जीवन 1991 से लगायत 2020 तक के 38 अपराधिक मामलो के क्राइम हिस्ट्री का जिक्र करते हुए एक बड़ा अपराधिक व्यक्ति होने को प्रमाणित किया है। न्यायाधीश ने इसके पेज संख्या 49 पर यह भी जिक्र किया है की अभियुक्त धनंजय सिंह के खिलाफ दर्ज अधिकतम मुकदमें में वह उन्मोचन,फाइनल रिपोर्ट अथवा सरकार द्वारा मुकदमा वापस लिए जाने के कारण दोषमुक्त होकर मुकदमें समाप्त भी हो चुके है।
मुअसं 120/20 धारा 364, 386, 504, 506 एवं 120 बी में सभी गवाह सत्य प्रकाश यादव, हरेन्द्र पाल,कौशलेंद्र प्रजापति, अनिल यादव, जयप्रकाश सिंह और मुकदमा वादी खुद अभिनव सिंघल होस्टाइल हो चुके है। इसके बाद भी मुकदमें की पत्रावली में मौजूद साक्ष्य 164 के बयान एवं मोबाइल के वीडियो आदि प्रमाण घटना के साक्ष्य मौजूद है और अपराध कारित होना प्रमाणित कर रहे है।अतः दोषसिद्ध होता है।
इसके बाद न्यायाधीश ने धारा 364 में 07 साल की सजा और 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाया,धारा 386 में 05 साल की सजा और 25 हजार रुपए की जुर्माना लगाया,504 मे 01 साल और 506 में 02 साल की सजा के साथ 120 बी में भी 07 साल की सजा और 50 हजार रुपए का जुर्माना लगा दिया, जुर्माना न जमा करने पर चार माह की सजा भुगतने का आदेश पारित किया है।
इस सजा के पीछे का खेल जो भी हो लेकिन इतना तो तय है कि लोअर कोर्ट के इस न्यायाधीश द्वारा अपने आदेश में जितने फाइन्डिंग दिए गए है उसके आधार पर हाईकोर्ट से आदेश के खिलाफ स्थगन आदेश पारित नहीं हो सकेगा। जब तक लोअर कोर्ट के आदेश पर स्टे ( स्थगनआदेश) नहीं पारित होगा तब तक धनंजय सिंह किसी भी स्तर के चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। इतना ही नहीं कानून के मुताबिक सात साल की सजा का समय बीतने के बाद भी धनंजय सिंह चुनाव नहीं लड़ सकेंगे ऐसा न्यायविदो का मानना है।इस तरह धनंजय सिंह के जीवन का पहली सजा उनके राजनैतिक सफर को पूरी तरह से विराम लगाती नजर आ रही है।