शाहीपुल की सुंदरता को राहगीर लगा रहे ग्रहण 

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अमन की शान

अनवर हुसैन 

 

शाहीपुल की सुंदरता को राहगीर लगा रहे ग्रहण 

 

शाही पुल के देख-रेख में बरती जा रही भारी उदासीनता

 

सही रख-रखाव के अभाव में विलुप्त हो रही ऐतिहासिक धरोहर की सुन्दरता

 

जौनपुर। ऐतिहासिक धरोहरों का समाज में अलग महत्व होता है, ये हमें मानव समाज और सभ्यता तथा इसके इतिहासिकता से रूबरू कराता हैं। ऐतिहासिक महत्व की चीजों की खोजबीन और उनका अध्ययन, किसी सभ्यता के बारे में जानकारी जुटाने और पुरानी धरोहरों को संरक्षित करना आर्कियोलॉजी कहलाता है, और उनकी रख-रखाव का जिम्मा पुरातन विभाग को होता है। जौनपुर से सटे गोती नदी के उपर बना प्राचीन और ऐतिहासिक शाही पुल रख-रखाव के अभाव में अपनी सुन्दरता तो पहले ही खो चुका है और उस जख्म पर नमक रगड़ने का कार्य जौनपुर के राहगीर कर रहें है। इसकी उपेक्षा पुरातत्व विभाग और शासन-प्रशासन द्वारा की जा रही है। पुल पर तरह-तरह के पेड़-पौधे और झंखाड़ होने से यह विषैले विषधरों का भी बसेरा बनता जा रहा है। जौनपुर की धरती पर ऐतिहासिक धरोहरों की कमी नहीं है। यहां पर्यटन की दृष्टिकोण से अपार संभावनाएं हैं। जिले के ऐतिहासिक शाही पुल स्थापत्य कला का नायाब नमूना है। इसे जौनपुर प्रांत के गवर्नर मुनीम खान ने मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में बनवाया था। इसके निर्माण के समय को लेकर हालांकि इतिहासकारों में मतभेद है। दो ताखों के संधि स्थल पर गुमटियां निर्मित हैं। पहले इन गुमटियों में दुकानें लगा करती थीं। यह ऐतिहासिक धरोहर तो पहले ही रख-रखाव के अभाव का शिकार रहा है लेकिन अब इसपर राहगीर लघुशंका कर जले पर नमक छिड़कने का कार्य कर रहें है। यहाँ आम तौर पर अक्सर देखा जाता है कि पुल के कई हिस्सों से राहगीर खड़े होकर पेशाब करते हैं। जिससे पुल से गुज़रने वाले राहगीरों को एक बूरे दृष्य व बदबू के उलझनों से गुजरना पड़ता है। शाही पुल को हर नजरिए से महत्वपूर्ण होने के बावजूद इसके रख रखाव में भारी उदासीनता बरती जा रही है। जिसके परिणाम स्वरूप अब यह पुल कमजोर एवं जर्जरावस्ता की तरफ लगातार बढ़ता नजर आ रहा है। बता दें कि इस पुल के दोनों तरफ पीपल के पेड़ उगे हुए हैं जो पुल की दीवारों को अनवरत कमजोर बना रहें है। पीपल के पेड़ो की जड़ें इतनी मोटी हो गयी है कि पुल के पावों में दरारें पड़ने लगी है। जो स्थिति दिख रही है जो पुल सैकड़ों बाढ़ को सहन किया अब अगर बड़ी बाढ़ आयी तो पुल का अस्तित्व ही खत्म हो सकता है। तब की दशा में फिर जौनपुर शहर दो भागों में नजर आ सकता है। वहीं पुरातत्व विभाग और नगर पालिका परिषद इस समस्या पर आंखे बंद बड़े ही खामोशी से इस धरोहर की सुन्दरता को बर्बाद होते हुए देख रहें हैं। प्रत्यक्षदर्शियों की माने तो ज्यादातर शाही पुल से गुज़रने वाले पुरुष लघु शंका वहीं करते हैं। उक्त मार्ग से राहगीरों में महिलाओं का भी आवागमन रहता है, जो राह चलते मन ही मन उन्हे कोसती रहतीं है। वहीं गुज़रने वाले राहगीरों को मुंह ढककर जाना पड़ता है। सूत्रों की माने तो इसके रख-रखाव में लगे पुरातन विभाग का ध्यान पूरातन की सुन्दरता पर नहीं बल्कि खुद की व्यवस्था पर ध्यान लगा रहता है। पूरातत्व विभाग के अधिकारी केवल इस ताक में रहतें हैं कि किसी मकान का नव निर्माण हो और उसपर दखल अंदाजी कर खुद की जेब वैâसे गर्म किया जाय। हालांकि अब इन ऐतिहासिक धरोहरो की कमान जिला प्रशासन को पूर्णरूप से अपने हाथों में लेकर किया जाना चाहिये। ताकि सुन्दरता में ग्रहण लगने के बजाय चार चाँद लगाया जा सके।

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