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आलेख /लेख

आहत धार्मिक भावनाओं की बात करने का असली हकदार कौन है?

आलेख : सुभाष गाताडे क्या किसी दूसरे धर्म के प्रार्थना स्थल में बेवक्त जाकर हंगामा करना या अपने पूजनीय/वरणीय के नारे लगाना, ऐसा काम नहीं है, जिससे शांतिभंग हो सकती है, आपसी सांप्रदायिक सद्भाव पर आंच आ सकती है? इस सवाल पर कर्नाटक की…
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ये देश है या माफियाओं का राजनीतिक तंत्र

(आलेख : महेंद्र मिश्र) माफिया केंद्र को चला रहा है या फिर केंद्र माफियाओं के सहारे चल रहा है, कुछ कह पाना मुश्किल है। देश और विदेश से सामने आयी दो सूचनाओं ने न केवल एक गणतंत्र के रूप में भारत की पहचान को शर्मसार किया है, बल्कि भारत की…
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सर सैय्यद की सोच आज भी ज़िंदा हाँ -अकरम हुसैन क़ादरी

अलीगढ : किसी का जिस्मानी तौर से इस दुनियाँ से चले जाने का मतलब यह नही है वो मर गया, कोई मरता तब है जब उसकी सोच मर जाती है यूँ तो हिंदुस्तान की सरजमीं पर अनेक महापुरुष आये और चले गए लेकिन उन्होंने अपनी सोच के माध्यम से समाज को एक नई दिशा…
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वायनाड का जीवन संघर्ष

आलेख : बृंदा करात, अनुवाद : संजय पराते उस छोटी सी लड़की की मुस्कान ऐसी है कि वह सबसे अंधेरी जगह को भी रोशन कर सकती है। अपने छोटे हाथों को फैलाते हुए वह हम तीन अजनबियों, पी.के.श्रीमती, सी.एस. सुजाता और मुझसे, इस तरह अभिवादन करती है, जैसे…
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विष्णु नागर के दो व्यंग्य. हराम की खानेवाले

हराम की खानेवाले यहां हराम की खाने वाले हर हालत में हराम की ही खाते हैं। मेहनत की कोई गलती से भी उन्हें खिला दे, तो बेचारों को दस्त लग जाते हैं। उन्हें किसी दिन खाने को न मिले, तो वे भूखे रह जाएंगे, मगर खाएंगे तो सिर्फ और केवल हराम की…
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भेड़ की खाल ओढ़कर घाटी में घुसने की मंशा

🔵 चुनावों में सहूलियतों और राहतों का ऐलान बुरी बात नहीं है – लोकतंत्र में यही वक़्त होता है, जब लोक से तंत्र को थोड़ा बहुत डर लगता है। चुनाव ही ऐसे अवसर होते हैं, जब ऊँट और उस पर सवार नेता और उनकी पार्टियां पहाड़ के नीचे आती हैं।…
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धर्मनिरपेक्षता : पश्चिमी या आधुनिक

(आलेख : राम पुनियानी) भारत का स्वाधीनता संग्राम बहुलतावादी था और उसका लक्ष्य था धर्मनिरपेक्ष एवं प्रजातांत्रिक मूल्यों की स्थापना। यह हमारे संविधान की उद्देशिका से भी जाहिर है, जिसमें स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व जैसे मूल्यों को…
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विष्णु नागर के तीन व्यंग्य- धर्मा जी और मंत्री जी

लेख :-यह तब की बात है, जब धर्मा जी घर में शर्ट में पजामा खोंसे रहते थे और बाहर जाते थे तो पैंट- शर्ट पहन लेते थे। तब तक वे आगे बढ़ते-बढ़ते अखबार के सहायक संपादक पद पर पहुंच चुके थे। उनकी कलम में इतनी धार आ चुकी थी कि उनके लेखों से…
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माननीय सदस्य, सड़ांध सचमुच बहुत गहरी है!

आज भारतीय दो विचारधाराओं से संचालित होते हैं। संविधान की प्रस्तावना में निर्धारित उनका राजनीतिक आदर्श स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के जीवन की पुष्टि करता है, जबकि उनके धर्म में निहित उनका सामाजिक आदर्श उन्हें इससे वंचित करता…
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समाज के सांप्रदायीकरण की परियोजना है अग्निवीर

सत्य में अप्रत्याशित रूप से सामने आने की अद्भुत क्षमता होती है। ऐसा ही कुछ विवादास्पद 'अग्निवीर योजना' के साथ हुआ है -- सेना में चार साल के अनुबंध पर आधारित रोजगार योजना की शुरूआत की गई थी – और जिसके कारण हाल ही में हुए संसदीय चुनावों…
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